Thursday, April 9, 2009

10th april opening poem

मंदिर मंदिर मूरत बेबस
हर गुरुद्वारा मस्जिद भी चुप हैं
मंदिर मंदिर मूरत बेबस
हर गुरुद्वारा मस्जिद भी चुप हैं

ये वो हैं जहा से रोज़ तेरा आना जाना हैं
मैं बस एक ग़ज़ल के इंतज़ार में
और शायद यही मेरा फ़साना हैं
मैं हुनर तो नहीं बस एक अहसास हु तेरा
तुझे अपने दिल में जगह दूँ
वही चाँद वही आसमा और वही मोहब्बत
जो न कह सको तुम अपनी बात किसी से तो
हे उदयपुर मुझसे बस मेरी आवाज़ उधार लो
डोलते फिरते हैं तारे उस चाँद के आस पास
पर जल रहा हैं सूरज अकेला
बताइए कौन जाए उसके पास
आग बहुत हैं इस दिल की ज़मीं पे
मेरे प्यार की बारात
ढूंढ़ लो तुम भी एक चाँद
अरे अभी तो यही था कहाँ गया
लगता हैं उदयपुर हैं वो आपके पास