Sunday, November 23, 2008

20th nov opening poem

खुश रहे ये उदास रहे बस वो मेरे आस पास रहे
वो नहीं तो उसकी आस रहे
जैसे झरने को पानी कि प्यास रहे
जब भी कसने लगा उतार दिया
रिश्तो में कुछ फासला ये भी साथ रहे
बेहोश हो गए कुछ सित्रई भी
(वो हैं ही इतनी खुबसूरत _
जो साड़ी उम्र उसके साथ रहे

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