Sunday, November 23, 2008

21st november opening poem

कहाँ आके रुके थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
जो मिला उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा
वो तेरे नसीब की बारिश किसी और छत पे बरस गयी
ये दील बेकरार हैं उसे भूल जा
मैं तो गुम था तेरे ही ध्यान में
तेरी आस तेरे गुमान में
सजा भी लगी ये चलती हवा तेरे बिन
मेरी चिंता न कर मुझे भूल जा
कहीं चाक जान कर रफू नहीं
दील के दरद को जो सिल दे
तेरे सिवा मुझे कुछ कबूल नहीं

जो हुआ उसे भूल जा

1 comment:

Unknown said...

nice poem yarrrrrrrrrr
kaha se socha yar.thoda mind power humko b de do.hiiiiiiii
miss you lot.