Tuesday, May 13, 2008

10th may opening poem

कभी ज़माने की बातो का हम पर असर हो जाए
कभी ज़माने की बातो का हम पर असर हो जाए
तो इश्क का रोग लगे और ज़िंदगी बसर हो जाए
हाँ कुछ लोगो ने इश्क को पागलपने का नाम दिया
हाँ कुछ लोगो ने इश्क को पागलपने का नाम दिया
खुदा करे उनका भी होश कही जाए
ज़िंदगी काटने के हमने बहाने ढूंढे
(हर बात पे बहाने ढूंढेते हैं हम )
कि ज़िंदगी काटने के हमने बहाने ढूंढे
कंगाल बस्ती मे हमने खजाने ढूंढे
थक कर मैं चूर हुआ फिर भी
(किसी को याद करते करते थक जाते हैं हम )
थक कर मैं चूर हुआ फिर भी
रेत मे तेरे लिए घर बनने के हज़ार फ़साने ढूंढे
प्यास जिसकी थी वो कभी पास ना आया
(हैं जी )
कि प्यास जिसकी थी वो कभी पास ना आया
ज़िंदगी को मेरा सलाम रास ना आया
कम से कम मुझको ज़िंदगी की कदर हो जाए
एक दिन ये दुनिया मुझे धुधे और
मेरी ज़िंदगी तेरे साथ बसर हो जाए
रोज़ सुनता हूँ इतनी आवाजे
रोज़ सुनता हूँ मैं इतनी आवाजे
काश एक दिन एक सुबह
किसी आवाज़ को मेरी आवाज़ से प्यार हो जाए

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