सब आने वाले बहला कर चले गए
आंखों को आँसुओ की आदत दिला कर चले गए
कि सब आने वाले बहला कर चले गए
आंखों को आँसुओ की आदत दिला कर चले गए
मलबे के नीचे आकर मालूम हुआ
सब कैसे दीवार गिरा कर चले गए
अब अगर लौटेंगे तो सिर्फ़ रख बतोरेंगे
जंगल मे जो आग लगाकर चले गए
मैं था दिन था और एक लंबा रास्ता था
(किसी के दूर चले जाने के बाद ये सब बातें बहुत याद आती हैं )
कि मैं था दिन था और एक लंबा रास्ता था
पर ना जाने क्यों सब मुझे खाई का पता बताकर चले गए
चट्टानों पे आकर ठहरे दो रास्ते
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
चट्टानों पे आकर ठहरे दो रास्ते
पर ये दिल हमारा वो चट्टान बनाकर चले गए
कुछ किताब के पन्ने ऐसे भी नज़र आये
(कभी कभी मैं भी पढता था )
कि कुछ किताब के पन्ने ऐसे भी नज़र आये
भरे भरे थे पर खली से नज़र आये
आये मोहब्बत हम तेरे इंतज़ार मे हम आज भी वही खड़े हैं
जिस खली वक्त को तुम मेरा पता बता कर चले गए
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