Thursday, May 15, 2008

14 th may closing poem

तेरी राष्ट्र सेवा पर जब मुस्कुराने लगे लोग
तुम्हे तुम्हारा भविष्य दिखाकर डराने लगे लोग
तो मत घबराना डटे रहना
उन्हें भी मत कुछ कहना
हर बात को मगर धैर्य से सहना
ग्रेट वाल कि भांति कभी ना ढहना
इनमे से भी कियो ने तेरी ही तरह शुरुआत की थी
तब इन्ही दरिंदों ने उन पर भी आघात की थी
हथियार जब दाल दिए तब भीड़ ने ढेरों हाथ दिए
अब ये भीड़ की भीड़ हैं
इनका अगला लक्ष्य तुम्हारी नीड हैं
ये तो खूनी राहों पे चिराग जलाते रहेंगे
किसी के जगने पर उसे सुलाते रहेंगे
मातृभाषा मात्रभूमि पर त्याग न्यौछावर करो
वरना ये लोग तो नस्लों को खोखला करते रहेंगे

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