Thursday, May 15, 2008

13 th may closing poem

कसूर ना उनका था ना हमारा
हम दोनों को ही ना आया रिश्तो को निभाना
कसूर ना उनका था ना हमारा
हम दोनों को ही ना आया ये रिश्तो को निभाना
वो चुप्पी का अहसास जताते रहे
हम मोहब्बत को अपने दिल मे छुपाते रहे
प्यार मन ही मन करते रहे
(बड़ा कमल का हैं ये प्यार )
कि प्यार मन ही मन करते रहे
पर फिर भी ना जाने क्यों उस प्यार को
सारी दुनिया से छुपाते रहे
जब देखते थे किसी सागर को उफनते हुए
(याद हैं ना वो दिन जब ऐसा कुछ देखा था आपने )
कि जब देखते थे किसी सागर को उफनते हुए
टैब एक दूसरे का हाथ थाम लेते थे
जब रोशनी धुंधली होती थी बारिश के बाद
आंसू अपने मन ही मन बाँध लेते थे
मुझे आया ही नही तुझे मानना
प्यार से तेरे पास बैठना
तुझे प्यार से रोकना
ये दुनिया हैं मेरे दोस्त
ये दुनिया हैं मेरे दोस्त
रोज़ किसी का यह आना
और एक दिन किसी को छोड़कर चले जाना

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