Wednesday, May 7, 2008

2nd may closing poem

वक्त कि आवाज़ हैं ये कदर करो मेरी तुम
वक्त कि आवाज़ हैं ये कदर करो मेरी तुम
मैं कल फिर ना आऊंगा
जो वक्त हूँ आज तुम्हारा
एक दिन एक पल मे मैं किसी और का हो जाऊंगा
मैं कहा कब रुक कर रहता हूँ
मैं पानी कि तरह बस बहता रहता हूँ
मैं वक्त आया हूँ आज
सच आऊंगा कल पर ये पल ना होंगे
आज करो जो करना हैं
मैं तो कल ना जाने कहाँ चला जाऊंगा
ना रुका हूँ मैं किसी के पास
ना कभी रुक पाऊंगा
चाहता हूँ हर एक के साथ पुरा वक्त बिताना
पर वक्त नाम हैं ना मेरा
इसीलिए वक्त के पास भी कहाँ रुक पाता हूँ
ये वक्त हूँ मैं इसीलिए घड़ी की सुइयों के साथ
हर वक्त बढ़ता रहता हूँ
मुझे भी वक्त पर कहीं पहुँचाना होता हैं
हर वक्त का एक वक्त होता हैं
वक्त होता हैं किसी को उठाने का मनाने का
जगाने का मिलाने का हज़ार बहने बनने का
इसीलिए मैं वक्त हूँ क्यूंकि
मैं हर पल वक्त पर पहुंचता हूँ
ना कभी वक्त से पहले होता हूँ
ना कभी वक्त के बाद
मैं वक्त हूँ इसीलिए
हर वक्त आपके पास होता हूँ

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