Thursday, May 8, 2008

8th may opening poem

चन्द लम्हे बचे हैं तेरे मेरे साथ के
मुमकिन हैं कि बिछड़ जाए बिन मुलाक़ात के
कल आसुओं की ये सौगात होगी
नए लोग होंगे नई बात होगी
कल आसुओं की ये सौगात होगी
नए लोग होंगे नई बात होगी

मैं हर हाल मे मुस्कुराता रहूंगा
(वादा जो किया हैं ना hmmmm )
मैं हर हाल मे मुस्कुराता रहूंगा
अगर तुम्हारी मोहब्बत हर पल मेरे पास होगी
इन आसुओं को महफूज़ रखना अपनी आंखों मे
इन आसुओं को महफूज़ रखना अपनी आंखों मे
एक दिन तुम्हारी आंखों मे भी आंसुओं की बरसात होगी
मुझे तो तुझसे इतनी मोहब्बत ना थी
(हर प्यार करने वाला यही कहता हैं )
मुझे तो तुझसे इतनी मोहब्बत ना थी
इन धडकनों को भी तेरी इतनी आदत ना थी
पर अब
पर अब हर अदा तेरी मेरी आदत सी हो गई हैं
तेरी हर आदत मेरी ज़िंदगी सी हो गई हैं
तेरी हर आदत से अंकित को मोहब्बत हो गई हैं
लम्हों को सजाकर अपने तकिये के पास रखना
(जैसे अभी रखे हैं कुछ लम्हे आपने तकिये के पास आय हाय )
उन लम्हों को सजाकर अपने तकिये के पास रख लेना
और उस तकिये को अपनी बांहों मे भर लेना
लम्हे वो बीते बहुत याद आयेंगे
एक दिन जब हम ये तेरा शहर छोड़ जायेंगे

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