Wednesday, May 7, 2008

5th may opening poem

मेरी उम्मीद छुपी थी मेरे सवालो मे
तुने इकरार ना सही इनकार ही किया होता
मैं इतना बुरा भी तो नही सनम
तुने कुछ तो मेरा ऐतबार किया होता
(ऐसा होता हैं ना उदयपुर जब हम किसी से बेइंतहां मोहब्बत करने लगते हैं तो उसका इनकार या इकरार सब हमारे लिए बहुत ज़रूरी होता हैं )
कि मैं इतना बुरा भी तो नही सनम
तुने मेरा कुछ तो ऐतबार किया होता

मैं तो तेरे अपना हूँ
मैं तो तेरे अपना हूँ
नही कोई सपना हूँ
तेरी हर बात मैं सबसे छिपाऊ
तु गैर माने तो भी कोई बात नही
गैर बनकर ही तेरा दामन तो ना मैंने दागदार किया होता
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
अफ़सोस कि तुम मेरी पहली और आखिरी मोहब्बत हो
अफ़सोस....
(अफ़सोस इस बात का कि तुम मिली नही )
अफ़सोस कि तुम मेरी पहली और आखिरी मोहब्बत हो
मुझ पर ना सही बस इसी अहसास पर एक पल को सोच विचार तो किया होता
मैंने तो तुम्हे एक दफा मोहब्बत की थी
कि मैंने तो तुम्हे एक दफा मोहब्बत की थी
अगर ये जुर्म भी होता तो ये गुनाह मैंने बार बार किया होता
तुम ये दुआ ना दे देना कि सदा खुश रहो अंकित
तुम ये दुआ ना दे देना कि सदा खुश रहो अंकित
एक बार नाराज़गी का अपनी अपनो से तो ज़िक्र किया होता
तेरा बिना जीना किन्नी बड़ी सज़ा हैं
(हैं जी )
तेरे बिना जीना किन्नी बड़ी सज़ा हैं
काश तुने भी मेरा थोड़ा सा इंतज़ार किया होता

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