Thursday, May 8, 2008

6th may closing poem

तुम कहती हो तुम्हे फूलों से प्यार हैं
तुम कहती हो तुम्हे फूलों से प्यार हैं
मगर जब फूल खिलते हैं
तुम उन्हें टहनियों से तोड़ देती हो
तुम कहती हो कि तुम्हे बारिश से प्यार हैं
(बारिश की वो बूंदे वो प्यारा सा मौसम )
तुम कहती हो तुम्हे बारिश से प्यार हैं
मगर जब बारिश होती हैं
तुम किसी पेड़ के पीछे छिप जाती हो
तुम कहती हो तुम्हे हवाओ से मोहब्बत हैं
तुम कहती हो तुम्हे हवाओ से मोहब्बत हैं
मगर जब हवाए चलती हैं तुम खिड़किया बंद कर लेती हो
ना जाने क्यों ऐसा करती हो मगर करती हो
तुम कहती हो तुम्हे मुझसे बातें करना बहुत पसंद हैं
(आय हाय क्या smile आई हैं जी )
तुम कहती हो तुम्हे मुझसे बातें करना बहुत पसंद हैं
मगर जब मिलती हो चुप हो जाती हो
तुम कहती हो अपने हाथ से खाना खिलोगी
तुम कहती हो मुझे अपने हाथ से खाना खिलोगी
मगर जब घर आता हूँ कहाँ कुछ खिला पाती हो
वही कोने मे सोफे पे टकटकी लगाकर
बैठे बैठे बस मुझे देखती जाती हो
तुम कहती हो नींद वक्त पर लेना
अपना ध्यान रखना
तुम कहती हो नींद वक्त पर लेना अपना ध्यान रखना
क्यूंकि तुम्हे नींद से बड़ा प्यार हैं
मगर मुझ शैतान को याद करने के बाद
कहाँ एक पल भी तुम सो पाती हो
हर बार तुम मुझसे बहुत सी बातें करना चाहती हो
मगर मैं वक्त का मारा हूँ
कहाँ वक्त पर होता हूँ
कहाँ वो सारी बातें अब तुम तुम मुझसे कर पाती हो

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