Friday, May 2, 2008

1st may opening poem

जी रहे हैं ज़िंदगी कि सांसो मे तुम हो
जब आंखें बंद करता हूँ तो हर ख्वाब मे तुम हो
जब किनारे बैठा होता हूँ और लहरे छूकर जाती हैं
जब किनारे बैठा होता हूँ और लहरे छूकर जाती हैं
तब लगता हैं उन लहरों मे सिर्फ़ तुम हो
जब बोलता हूँ मैं चटर चटर
(सब कहते हैं कि बहुत बातें आ गई हैं मुझको )
जब बोलता हूँ मैं चटर चटर
तो मेरी हर बात मे सिर्फ़ तुम हो
लिखता हूँ मैं जब भी बिना कुछ सोचे
या जब सोचकर लिखना चाहता हूँ
सच कहू मेरे हर लफ्ज़ मे सिर्फ़ तुम हो
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
धड़कता तो था ये दिल पहले भी
(हैं जी बहुत धड़कता हैं ये दिल )
कि धड़कता तो था ये दिल पहले भी
पर अब धड़कन मे सिर्फ़ तुम हो
तेरे आने का तो कभी पता रहता नही
(तुम कभी आ जाती हो तो कभी चली जाती हो )
तेरे आने का तो कभी पता रहता नही
शायद इसीलिए ज़िंदगी भर मेरे इंतज़ार मे सिर्फ़ तुम हो
तेरी कॉलोनी वालो पर गुस्सा अब आता नही
(ये तब जब आप किसी से मिलने किसी को लेने उसके घर जाते हैं )
तेरी कॉलोनी वालो पर गुस्सा अब आता नही
मैं क्या करू तेरी कॉलोनी मे तेरे सिवा कोई बता नही
मेरी हर बात मे तुम हो
मेरी हर बात मे तुम हो
चाँद की रात मे तुम हो
रोज़ झरने मे जिस शक्स से मुलाक़ात होती हैं
(जब झरना गिरता हैं तो एक तस्वीर बनाता हैं महबूब कि तस्वीर )
रोज़ झरने मे जिस शक्स से मुलाकात होती हैं
मेरी उस मुलाकात मे सिर्फ़ तुम हैं
सच कह रहे हैं अभी तक सिर्फ़ इसलिए जिंदा हैं कि
अब मेरी जान मे तुम हो

1 comment:

Ridhi said...

very beautiful poem Ankit!!!!!!!!
its too lovely
yaar aap itna aacha kaise soch lete ho??????