Thursday, May 15, 2008

14th may opening poem

रह ना पाओगे कभी भुलाकर देखो
यकीं ना मेरी बात पर हो तो हमे आजमा कर देखो
हर जगह महसूस होगी कमी हमारी
अपनी महफ़िल को कितना भी सजाकर देखो
(होता हैं ना ऐसा जब कोई चला जाता हैं तो बहुत याद आता हैं मुलाकाते जब ख़त्म होती हैं तो बड़ा बुरा लगता हैं ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
चलो चलते हैं उस जहाँ मे
जहा रिश्तो का नाम नही पूछा जाता
चलो चलते हैं उस जहाँ मे
जहा रिश्तो का नाम नही पूछा जाता
धडकनों पे कोई बंदिश नही
ख्वाबो पे कोई इल्जाम नही लगाया जाता
जिस्म ना हो साथ तबभी क्या
कि जिस्म ना हो साथ तब भी क्या
साँसों का हिसाब किसी को दिया नही जाता
पर कहाँ होगा ऐसा जहाँ मालूम नही
पर कहाँ होगा ऐसा जहाँ मालूम नही
सितारों पर या चाँद के आस पास मालूम नही
पर सितारों पर घर नही बनाया जाता
(सितारे कितने ही खूबसूरत हो वहा घर नही बनाया जाता )
पर सितारों पर घर नही बनाया जाता
उस चाँद से दिल नही लगाया जाता
इसीलिए सारी कायनात छोड़ हम तुम पर मरते हैं
एक ही बात हम तुझे बहुत प्यार करते हैं

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