Thursday, May 15, 2008

15th may closing poem

हे भगवान तु भी ये कैसा रिश्ता बनता हैं
हे भगवान तु भी ये कैसा रिश्ता बनता हैं
एक तरफ़ तो दिल जिसके लिए बैचैन रहता हैं
दूसरी तरफ़ से ना उसका कोई जवाब आता हैं
(होता हैं ना ऐसा मन ही मन हम किसी को बहुत प्यार करने लगते हैं )
एक तरफ़ तो दिल जिसके लिए बैचैन रहता हैं
दूसरी तरफ़ से ना उसका कोई जवाब आता हैं

जलती थी शमा उनके मन मे मेरे लिए
जलती थी शमा उनके मन मे मेरे लिए
कुछ अहसास ही तेरे दिल मे भी तो जगाता हैं
(शमा जलती हैं तो बड़ा कमाल होता हैं )
दे दो थोडी जगह अपने दिल मे
कि दे दो थोडी सी जगह मुझे अपने दिल मे
अरे इसमे तेरा क्या जाता हैं
बस एक ही ख्याल मेरे दिल मे बार बार आता हैं
अगर कुछ नही हैं तु मेरे लिए
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
कि एक ही ख्याल मेरे दिल मे बार बार आता हैं कि
अगर कुछ नही हैं तु मेरे लिए
तो फिर क्यों हर शख्स मे मुझे तेरा चेहरा नज़र आता हैं
तो फिर क्यों बात किसी कि भी हो तु हर बात मे चला आता हैं
पन्ने पलटू किताबो के
हर चीज़ मे हर बात मे हर शब्द मे तु नज़र आता हैं
चाहे जाऊ घुमाने टहलने हर शाम
हर बीती शाम मे उस पाल पर खड़े होकर
ठंडी हवाओ के झोंको मे तेरा अहसास सा दिख जाता हैं



1 comment:

manu said...

aaj kal poems nahi likhte ho kya ?kya kahin busy ho kya.