RJ Ankit of big chai on Big FM 92.7 has won the hearts of listeners & callers instantly.Big Chai by him need no introduction,its ultimate Super Duper Hit!..His style,His Voice,His accent&his relation wd the listeners makes him the best RJ in Udaipur & no doubt among top 5 in India and wd mentioning himself in limca book of records2009 he has proved it -----------
Friday, September 26, 2008
26th september closing poem
वो पूछते हैं कितनी देर तक मैं उन्हें प्यार कर सकता हूँ
वो पूछते हैं कितनी देर तक मैं उन पर कुछ लिख सकता हूँ
वो पूछते हैं कि कितनी देर तक मैं उन्हें सुन सकता हूँ
ये तो अब आप जानते हैं उदयपुर कि आपका और हमारा अब क्या रिश्ता हैं और मैं बस यही कहूँगा कि )
जैसे कोई दुआ दिल में हो
कि जैसे कोई दुआ दिल में हो
जैसे कोई शिकवा न कभी तुमसे हो
जैसे मोहब्बत हो तुम
और तुम्हे देख कर जैसे हम कहीं गुम
वैसा कोई और तुम सा न हो
न हो कोई जिसे देखने का मन होता हो
ख्वाब बहुत से आते हैं
पर ऐसा कोई ख्वाब नही जिसमे तू न होता
मेरी मोहब्बत का इम्तिहान न ले खुबसूरत
कौन कहता हैं कि कांटो को दिल नही होता
दिल होता हैं कांटो को भी
पर जुबां नही होती सबकी एक जैसी
दुनिया में कोई कितना भी खुबसूरत हो पर तुझ सा न हो
26th september opening poem
तू खुबसूरत इसका तुझे गुमान हैं
होंगे तेरे कई दीवाने पर तेरा ये दीवाना भी कमाल
तुझे लगता ऐसा की दीदार करना तेरा आसान नही
(तुम कैसे आओगे मुझे देखने , मैं तुम्हे मिलूंगी ही नही )
तुझे लगता ऐसा की तेरा दीदार करना आसान नही
मुझे लगता ये सबसे आसान हैं
(क्या प्रॉब्लम क्या हैं आपका )
तुझे लगता ऐसा की तेरा दीदार करना आसान नही मुझे लगता ये सबसे आसान हैं
मैं कोई बदल नही जिसे देख तू खिड़की बंद कर ले
न मैं कोई चाँद जो रात होने का इंतज़ार करे
मैं तो पागल तेरी पहली मुलाकात के बाद हो गया
तेरा पता नही पर मुझे तुझसे प्यार हो गया
सोचती होगी की जब बंद कर लेती हूँ घर के सब खिड़की दरवाजे
तो दीवाने को हम नज़र कहाँ से आते
मैं हूँ वो आइना तेरे कमरे का
जो छुप छुप के तेरा दीदार करता हैं
तेरी हर हरकत को अपनी आंखों में कैद करता हैं
तेरा पता नही पर सच तुझसे बहुत प्यार करता हैं
25th september closing poem
चूमता हूँ तो मेरे होठ जलते हैं
एक दीवार वो भी शीशे की
कि दो बदन जब पास पास चलते हैं
नींद से मेरा ताल्लुक नही सदियों से
देखो तेरे ये ख्वाब आकर कैसे मेरी छत पे टहलते हैं
मेरे हाथो के निशां मिलेंगे कदमो तले तेरे
सेहरा की कड़ी धुप में जब तेरे पाँव जलते हैं
25th september opening poem
जितनी बार पानी बरसा उतना याद किया
(कल बहुत बारिश हुई न हमारे शहर में )
इक बार कहो तो कि मुझे याद किया
जितनी बार पानी बरसा उतना याद किया
याद तेरी तब आई जब बादलो ने अपनी आँखें सहलाई
या जब किसी ने बड़े प्यार से ली एक अंगडाई
ये तितलिया भी आजकल मेरे साथ वक्त नही बिताती
और न ये अब मुझे जुगनुओ का किस्सा सुनती
लगता उन्हें कि अब मैं दीवाना हो गया हूँ
काम के अलावा किसी और में खो गया हूँ
न अब मेरे दोस्त मुझे अपने घर बुलाते हैं
दीवाना किसी का कहकर चिढाते हैं
कोई परवाह नही मुझे इस ज़माने की
परवाह बस तेरे पास आने की
तितलियों के परो पर तेरी खुशियों के कुछ रंग सजाने की
परवाह उस बरसते बदल को मोहब्बत सिखाने की
Wednesday, September 24, 2008
24th september closing poem
सारी बातें मुझे बिन बोले समझ आती हैं
मैं वैसे ही कहा चुप रहता हूँ
ऐसे ना देखो परेशानियों का ये सबब दे जाती हैं
तुम्हे जिद हैं कि मैं कह दू
मुझे जिद हैं कि तुम कह दो
पर मोहब्बत कहा मोहताज़ हैं लफ्जों की
मोहब्बत तो हमारी धडकनों मे हैं शामिल
मेरी आंखों मे पलता वो हसीं जज्बा
जिसे सवाय मेरे कोई और समझ ना पाया
ना इस मोहब्बत की कोई सूरत हैं
ना कमबख्त इसका हैं कोई पैमाना
बस मोहब्बत का दुश्मन ये सारा ज़माना
मैं जानता हूँ अब मेरे बारे मे हर कहीं बात होती हैं
(वो ऐसा हैं वो वैसा हैं ऐसा ही हैं वैसा हैं )
कि मैं जानता हूँ अब मेरे बारे मे हर कहीं बात होती हैं
कभी अच्छी तो कभी बुरी होती हैं
जो कहना जिसको कहे
बस तु हमेशा मेरे दिल मे रहे
क्यूंकि बातें हमेशा उनकी होती हैं
जो बातो के होते हैं लायक
बाकि ये शहर बखूबी जानता हैं
मोहब्बत मे कौन लायक और कौन नालायक
24th september opening poem
कभी कुछ कहने को नही होता
कभी ऐसे सवाल करता हैं ये दिल
जिनका कोई जवाब नही होता
चलो आज एक बात दिल पूछता तुम से
हम रूठ जाए तो क्या करोगी
रूठ कर तेरा फ़ोन न उठाये तो क्या करोगी
मैं जब भी करता ये जान कर नही करता
जो दिल हुक्म करता वही मैं हूँ करता
कभी शहर छोड़ जाऊ तेरा तो क्या करोगी
सिर्फ़ एक अहसास सा बन जाऊ मैं तो क्या करोगी
करोगी वही जो इस पल कर रही हो
गुस्से मे कसम से क्या लग रही हो
जब जानती हो ज़रूरी मैं तेरे लिए
तो फ़िर क्यों गुस्सा कर रही हो
ना जाऊँगा तुमसे दूर कभी
वादा ये पक्का करता अभी
Monday, September 22, 2008
23rd september opening poem
कि कभी मैं खुद से खफा हो जाता हूँ
और फ़िर बोलते बोलते चुप हो जाता हूँ
सोचता हूँ कि उस पल मैं किसी को नज़र ना आऊ
और फ़िर खुद से ही लिपट जाऊ
इस ठिठुरे हुए अहसास से कहीं दूर निकल जाऊ
पर कहाँ निकल पाता हूँ
मैं वो बर्फ हु कि
तु जो छू ले अपने होठो से
तो पिघल जाऊ मैं
तेरी चाहत मे कही इतना ना बदल जाऊ मैं
लिखने का सोचु किसी और विषय पर
और कलम से पुरे पन्ने पर तेरा नाम लिख जाऊ मैं
ये जाना पहचाना शहर अब लगता खुद से अनजाना हैं
जानता हूँ तुझे प्यार करता ये सिर्फ़ एक दीवाना हैं
दीवानगी मे कहीं इतना ना खो जाऊ मैं
सोचता हूँ कुछ पल मिले कि तेरे सिवा किसी को ना नज़र
कि तु कभी ना जाना इस अहसास से दूर
(अरे smile करना तो बंद करो )
कि तु कभी ना जाना इस अहसास से दूर
ऐसा ना हो कि कहीं अपनी ही बगल से निकल जाऊ मैं
23rd september opening poem
बाकी पल बस रूठने मनाने का
एक पल दिल के इधर से उधर जाने का
बाकि पल हैं नीर बहाने का
एक पल मे हैं शरारत
एक पल मे होती मोहब्बत
बाकी पल बस मोहब्बत पाने का
एक पल मे दिखता बादल एक खो जाने का
बाकी पल बस उस कोहरे से रोशनी लाने का
एक पल गिरते झरने से तेरी बेपनाह याद चुराने का
बाकी पल अहसास जगाने का
एक पल मे हो जात कोई गैर अपना
बाकी पल गिरो को अपना बनाने का
एक पल मे काजल तेरी आँख मे लगता तो काजल कहलाता
बाकी पल काजल को काजल कहलाने का
22nd september closing poem
कैसे गुज़ारा सोचो तुम
तुम संग सजना प्यार की बाज़ी
मैं क्यों हारा सोचो तुम
देकर अपना खून हैं सींचा
प्यार के गुलशन को लेकिन
(ऐसा होता होगा ना आपके साथ भी , किसी से बेइंतेहा मोहब्बत कर लो और वो मिले ही ना )
देकर अपना खून हैं सींचा
प्यार के गुलशन को लेकिन
सुख गई क्यों बहते बहते
वो प्यार की धारा सोचो तो
मेरी तरह से क्यों ना आख़िर कोई तुमसे प्यार करे
(कोई कर ही नही सकता जी जैसी मोहब्बत हम आपको करते हैं )
कि मेरी तरह से क्यों ना आख़िर कोई तुमसे प्यार करे
मेरी जगह पर तुम जो होते बोलो ज़रा क्या करते
बात इतनी सी लेकिन ये कही नही जाती
क्यों ऐसा ज़रा सोचो तो
22nd september opening poem
उनसे मिलने के बाद न जाने मैं क्यों बदल गया
कुछ दिन तो मेरा अक्स रहा उसकी आंखों मे
फ़िर क्यों हवा का वो झोंका उसका चेहरा बदल गया
जब हम अपने अपने हाल पर जी रहे थे
फ़िर क्या हुआ जो हमसे ज़माना बदल गया
कदमो तले जो रेत बिछी थी वो चल पड़ी
उसने छुआ हाथ तो सहारा बदल गया
कोई भी चीज़ अपनी जगह पर न रही
जाते ही एक शक्स के क्या क्या बदल गया
हैरत हैं सारे लफ्ज़ उसे बस देखते रहे
बातो मे अपनी बात को वो कैसे बदल गया
मेरी आंखों मे जितने आंसू थे वो सब बह गए
वो खुबसूरत बस मुस्कुरा के मेरी दुनिया बदल गया
अब अपनी गली मे अपना ही घर ढूंढ़ता हूँ मैं
वो कौन था जो शहर का नक्शा बदल गया
19th september closing poem
मेरे महबूब की आँखें हैं वो गहरी सी झील
जिसमे खिलते हैं मेरी मोहब्बत के फूल
उसको देखू तो मुझे शायरी करनी आ जाए
और मैं उसके लिए गाऊमोहब्बत गीत
वो मेरा दिल धड़कने की वजह
तुमने शायद मेरे महबूब को देखा नही
मेरे महबूब के झलवो का कोई जवाब नही
धुप सा रंग ख़ुद उसका
ख़ुद उस जैसी हवा नही
उसकी पायजेब मे बरसात का मौसम छनके
(छम छम जब बारिश की बूंदों की आवाज़ आती हैं असल मे वो उसकी पाँव की पायल हैं जो खनकती जाती हैं )
उसकी पायजेब मे बरसात का मौसम छनके
सर पे रेशम का दुपट्टा
न पूछ मेरा दिल कैसे धडके
वो जहा भर की हसीनो से जुदा हैं मेरे दोस्त
मेरे महबूब जैसा कोई कहा ये न पूछ
कुछ उसे फूल कहे पर फूल एक वक्त के बाद मुरझा जाता हैं
वो न चाँद जो कभी कभी आता हैं कभी बादलो मे छुप जाता हैं
वो इस अंकित के दिल का अहसास
जो जाने अनजाने बस इस दिल मे चुपके से समां जाता हैं
19th september opening poem
हौंसला उन्हें देना खुदा मेरे बाद
क्यूंकि वो आजकल लिखने लगी हैं मेरा नाम
तेरे नाम के बाद
कौन घूँघट को उठाएगा उसे चाँद कहकर
कौन करेगा वफ़ा की बातें मेरे बाद
आजकल खाने की थाली भी उससे नाराज़ सी रहती हैं
वो अब खाना भी खाती हैं मेरे खाने के बाद
फ़िर ज़माने मे मोहब्बत की कोई परछाई न होगी
भले ही ये सूरज रोज़ निकलेगा
मगर फ़िर भी प्यार करने वालो की दास्तान न होंगी
ए खुदा उसका बहुत ध्यान रखना मेरे जाने के बाद
रोएगी मोहब्बत भी सिसकिया ले लेकर
पढ़ाएगी बेवफाई वफ़ा का पाठ एक दिन
देखना मेरे जाने के बाद
Wednesday, September 17, 2008
18th september closing poem
कहीं भी रहे तू तुझे भूल ना पाउँगा
मेरे गम का तू दर्द न लेना
तेरे इस दर्द मे भी मैं सुकून पाऊंगा
जा जाके खो जा तू उन हसीं वादियों मे
(कभी लड़ाई होती हैं तो वो कहती होगी न मैं चली जाउंगी,मैं चली जाउंगी ,मैं चली जाउंगी )
कि जा जाके खो जा तू उन हसीं वादियों मे
दीवाना हूँ तेरा तुझे कहीं से भी ढूंढ़ लाऊंगा
तू खुश रहे तो मैं जी पाऊंगा
सच तेरे हर दर्द मे सुकून पाऊंगा
जा चली जा दूर तू इस घने कोहरे से
खुले आसमा मे सारे शहर मे मैं तो तेरा ही गीत गाऊंगा
रिश्ता मुझसे सोच समझ कर रखना
(वो ऐसा हैं वो वैसा हैं उसके लिए लोग ये कहते हैं अच्छा नही हैं बुरा हैं काफी सारे लोग होते हैं जो पंचायती करते हैं )
कि रिश्ता मुझसे सोच समझ कर रखना
थोड़ा सा बदनाम मैं
पर तुझे बदनाम न कर पाऊंगा
कोई पूछे मेरा नाम तो मना कर देना मेरे नाम से
वरना ये दीवाना दीवाना हैं
मोहब्बत का परवाना हैं
मैं अपनी मोहब्बत पर कभी न दाग लगाऊंगा
18th september opening poem
कहाँ से आती हैं
(ये उन सभी के लिए जिन्हें अपनी महबूबा परियो सी नज़र आती हैं )
ना जाने ये परिया कैसी होती हैं
कहाँ से आती हैं
हमे तो परियो के बीच मे भी तू ही याद आती हैं
कहने वाले कहते हैं वो बहुत सुंदर होती हैं
पर तेरी तारीफ़ हम से ज्यादा करी नही जाती हैं
दूर कहीं उन परियो की बस्ती बताते हैं
मगर वो परिया तब आती हैं
जब प्यार करने वाले किसी का दिल दुखाते हैं
होती उनके पास एक जादू की छडी हैं
मगर हम तुझे ही जादू बताते हैं
जादू तेरी उन आंखों का
जादू न कही उन सब बातो का
जादू छुप छुप कर मुझे ढूढने का
की वो जादू ख़ुद तुझे देख कर
कभी कभी हैरान सा होता हैं
चलना होता हैं उसे किसी और
और वो कमबख्त किसी और पे चलता होता हैं
चैन से सोने वाले भी चैन अपना तुझे देख कर खो देते हैं
पता नही परियो का क्या होता हैं
जिनके साथ न मेरा कोई नाता न हिस्सा हैं
बस चाहता हूँ की एक बार वो तुझे देख ले
थोडी गलतफहमिया उनकी भी खुदा दूर तो करे
17th september closing poem
वो उसकी आंखों मे छलकता प्यार भी
तेरी इस अदा को क्या कहे
कभी इकरार भी कभी इनकार भी
मुझे मिला वक्त तो तेरी जुल्फे सुलझा दूंगा
अभी तो ख़ुद वक्त से उलझा हूँ
एक दिन वक्त को उलझा दूंगा
दिल ये अब कुछ मानता नही
उदयपुर तेरे सिवा अब ये कुछ जानता नही
पहले मेरे पास होती थी हजारो बातें करने को
आजकल तेरे सिवा कोई बात हो वो दिन कैलंडर मे आता नही
हर पल तुझे याद करना तुझे सोचना तुझे बेंतेहा प्यार करना
और मेरे उदयपुर तेरे लिए वो सब कुछ करना
जो किसे ने कभी किया ना हो किसी ने कभी सोचा ना हो
17th september opening - big FM anniversary message
16th september opening poem
वो नाम मेरा ही तो हैं
(गौर फरमाइयेगा )
हथेली पर जिसे लिख कर मिटाती हो
वो नाम मेरा ही तो हैं
रोज़ मेहंदी जिसके नाम की रचाती हो
वो नाम मेरा ही तो हैं
रोज़ फ़ोन पर करती हो जिससे घंटो बातें बहुत सारा गुस्सा
वो नाम मेरा ही तो हैं
सुन के जिसको पलके तेरी झुक जाती हैं
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरे होठो मे जो छुप कर कांप रहा हैं
तेरी धड़कन मे दिल धड़कने के साथ गूंज रहा हैं
गूंज कर हर बार मेरा पूछ रहा हैं पता
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरी पूजा मे तेरी हर दुआ मे
झिलमिलाती शाम मे
हर उस सुबह मे
वो बारिश की बूंदों मे
वो नाम मेरा ही तो हैं
अपना नाम जिससे जोड़ा हैं तुने
दुनिया की हर रस्म को तोडा हैं तुने
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरे नाम के बिना अधुरा सिर्फ़ एक नाम हैं
वो नाम मेरा ही तो हैं
15th september closing poem
तो कहाँ होता इस RJ अंकित का जहान
शिकवा न करता कोई जिंदगी से
दिल का नाता न होता
ना दिल देता कोई पैगाम
गर नसीब को नही होती दर्द की पहचान
मायूस न हो कोई मुक़द्दर अपनी तन्हाई से
(कभी कभी बहुत अकेला लगता हैं न ! सब लोग साथ होते हैं तब भी )
मायूस न हो कोई मुक़द्दर अपनी तन्हाई से
हया नही हैं हमे अपनी बदनामी से
गर नसीब सबके दो चार होते
तो हम जैसे दीवाने भी हज़ार होते
हम तो तेरे लिए सिर्फ़ एक ही हैं
तुझे प्यार करने वाले शायद
थोड़े बदमाश पर थोड़े नेक ही हैं
गर खुदा मिल जाए तुम्हे
(मुझे तो मिलेगा नही )
गर खुदा मिल जाए तुम्हे
मुझे तो मिलेगा नही
क्यूंकि मैं खुदा को मानता नही
प्यार हैं जिंदगी इस प्यार के सिवा कुछ जानता नही
तो कहना इतना अपने उस खुदा से
की हमेशा उसका ध्यान रखे
हमेशा उसे खुश रखे
दे देना दुःख मुझे चाहे कितने भी
पर उस पर कभी दुःख का एक बादल भी न फिरे
Sunday, September 14, 2008
15th september - opening poem
लहजे की मालामात से हो रहा था सब ज़ाहिर
रो रही थी वो शिद्दत से
लडखडाते लफ्जों से कर रही थी बातें
तुम कहाँ थे इतने दिन
रोज़ फ़ोन करती थी
बात जो तुमसे करनी थी
जो बहुत ज़रूरी था
वो रह जाता हैं
प्यार मे हमेशा ऐसा ही हो जाता हैं
प्यार तेरा ठुकराकर सारा दिन तडपती थी
(गौर फरमाइयेगा )
कि प्यार तेरा ठुकराकर सारा दिन उलझती थी
तु बात करता नही मैं फ़ोन पर नम्बरों से उलझथी थी
(ये smile कैसी भाई )
चैन ही नही मिलता जागती हूँ सुबह भर मे
नींद ही नही आती
और ये बात किसी को बतायी नही जाती
जो नही कहा अब तक तुमसे अब ये कहती हूँ
सच मे तुमसे बहुत प्यार करती हूँ
सुनते ही इतना फ़ोन उसका कट गया
मैंने फ़िर से फ़ोन किया
पता चला हॉस्पिटल के किसी बूथ का नम्बर था
और अब उसकी साँसे थम चुकी थी
Friday, September 12, 2008
13th september closing poem
कभी सारे जहाँ को हँसाने को दिल चाहता हैं
कभी छुपा लेता हैं गमो को भी दिल किसी कोने मे
कभी किसी को सब कुछ सुनाने को जी चाहता हैं
कभी रोता नही मन किसी भी बात पर
कभी यूँही आंसू बहाने को जी चाहता हैं
कभी लगता हैं अच्छा आकाश मे उड़ते परिंदों को देखना
कभी एक सागर की लहर से भी जी घबराता हैं
कभी उन बहती लहरों के साथ भागने का दिल करता हैं
तो कभी सागर किनारे किसी कोने मे बैठ किसी को याद करने को दिल करता हैं
कभी बेगाने अपने हो जाते हैं
कभी अपने बेगाने से नज़र आते हैं
कभी सपने देखने से भी दिल डरता हैं
और कभी सपनो के लिए जान देने को दिल करता हैं
(आप लोगो ने अपनी ज़िन्दगी मे जो भी सोचा हो , जिसके लिए भी आप सुबह उठने से रात सोन तक खूब सारी मेहनत करते हो चाहे वो आपका करियर हो चाहे वो आपका सपना हो चाहे शहर मे खूब सारा नाम कमाने का हो तो अंकित बस यही कहेगा की आप लोगो को god बिल्कुल इंतज़ार न कराये और जिस चीज़ का ख्वाब आप लोग देख कर उठते हैं वो आपको आज ही मिल जाए )
13th september opening poem
हर बार कह कर किसी को याद किया नही जाता
प्यार करना तो अक्सर प्यार वाले ही जानते हैं
(गौर फरमाइयेगा उदयपुर )
प्यार करना तो अक्सर प्यार वाले ही जानते हैं
प्यार करके किसी को भुलाया नही जाता
अब एक और पल जुदाई का काटा नही जाता
(ये उनके लिए जिनके हमदम एक दुसरे सेमिल नही पाते महबूब कहीं दूर रहते हैं )
कि अब एक पल और जुदाई का काटा नही जाता
और सच तेरी यादो के सहारे अकेले अकेले अब जिया नही जाता
लोग रोज़ मोहब्बत की बातें करते हैं
और कुछ रोज़ मोहब्बत के नाम से हंसते हैं
पर सच कहू अपनी मोहब्बत का मजाक और देख नही जाता
कि जहाँ भी हो जल्दी से पास आ जाओ
क्यूंकि सच अब कलम उठा कर हमसे कुछ लिखा नही जाता
तुमसे प्यार किया आंखों आंखों मे इकरार किया
तु आंखों मे सब पढ़ कर हर बात का जवाब देती हैं
तेरी बस इस अदा पर ना पूछ
इस दीवाने ने क्या क्या वार दिया
12 th september closing poem
इन आंखों मे ख्वाब मे भी सिर्फ़ तेरा इंतज़ार किया हैं
ना आ सकेगा तो जालिम इत्तेला तो दे
(मैं busy थी मैं busy था काम बहुत हैं वक्त मिलते ही बताता हूँ )
ना आ सकेगा तो जालिम इत्तेला तो दे
ताकि ये दिल तेरी यादो को भुला तो दे
अपनो को भुलाकर सब कुछ छोड़कर
एक तुझ पर ही ऐतबार किया हैं
सच कहू मैंने इंतज़ार से भी ज्यादा तेरा इंतज़ार किया हैं
तू कांटो पर भी सुलाता तो शिकवा न करते
न शिकायत करते न किसी को रुसवा करते
ज़िन्दगी मांगी जो किसी ने हमसे
ज़िन्दगी ने मन ही मन सही पर प्यार किया हैं
और इस दीवाने ने हर शाम की तरह सिर्फ़ तेरा इंतज़ार किया हैं
(i wishकी आप अपनी ज़िन्दगी मे किसी का भी इंतज़ार ज्यादा न करे उदयपुर जिसको भी आप चाहे वो आपको जल्दी से मिल जाए क्यूंकि ये इंतज़ार बहुत ख़राब होता हैं इंतज़ार सपनो के पुरा होने का , इंतज़ार मोहब्बत के घर आने का , इंतज़ार नए दोस्त के मिलने का , इंतज़ार ये कहने का की मैं उसे कह पाऊंगा या नही वो मुझे मिलेगी या नही ,आप सबसे यही कहूँगा यही wish करूँगा की आप लोग जो भी सपना देखते हैं आँख खोलने से सोने तक वो जो godजी हैं न वो आपको जल्दी से दे दे )
12th september opening poem
और हौले से मुझे किसी ख्वाब की दुनिया मे ले जाता हैं
भूल जाते हैं दर्द सारे , गिले शिकवे भी
(गिले शिकवे होते रहते हैं टाइम नही हैं फ़ोन नही करते )
कुछ खुशी कुछ लम्हे वो प्यार के ऐसे दे जाता हैं
वो कौन जिससे हैं चंद मुलाकातों का रिश्ता
और इस चंद मुलाकातों मे वो अपना दिल सम्हालकर
मेरा दिल ले जाता हैं
माना वक्त की भागदौड़ मे मैं उसे जानता नही
पर ये बताओ मोहब्बत मे मोहब्बत करने का वक्त किसे मिल पाया हैं
और वो मेरे ख्यालो मे मुझे भी इंतज़ार करवाता हैं
मिलेगी अब तो ज़रूर पूछ लूँगा
(अबके पूछने वाला हूँ )
मिलेगी अब तो ज़रूर पूछ लूँगा
प्यार मे क्या कोई दीवाना कहलाता हैं
आँखें उसकी बहुत बातें करती हैं
वो होठो से चुप रहने का दिखावा करती हैं
हाँ लगता हैं इस दीवाने को वो थोड़ा सा पसंद करती हैं
पर जुबां से कुछ कहती नही आंखों से सब कुछ कहती हैं
Thursday, September 11, 2008
11th september closing poem
तो वो आपसे हो
हम बहुत तडपे अब तडपने की अदा किसी कि हो
तो वो आपसे हो
तमन्ना हैं साँसों की
आप बन गए ज़िन्दगी
आज बारिश मे भीग जाऊ
अगर बारिश तेरे घर के सामने हो
बारिश का बरसना और थामना गर आपसे हो
मैं दीवानापन कभी छोडू न अपना
(वो कहती हैं तुम दीवाने हो गए हो बहुत दीवाने हो ऐसे मत किया करो अच्छा नही लगता लोग क्या कहेंगे )
कि मैं दीवानापन कभी छोडू न अपना
गर ये दीवानापन आपसे हो
सज़ा प्यार की चाहे जो दे देना
पर मौत मेरी हो तो बस आपसे हो
इश्क अगर कोरे कागज़ पर फडफडाना चाहे
ये उंगलिया अगर कलम उठाकर कुछ लिखना चाहे तो लिख ना पाए
बस लिखे वही जो कुछ आपसे हो
Wednesday, September 10, 2008
10th september closing poem
पहली ही मुलाक़ात मे कुछ बात
आँखों आँखों मे ही सही पर हो ही जायेगी
सताएगी तेरी याद बाद मे
पर तेरी यादो से एक मुलाक़ात तो हो ही जायेगी
चेहरा दिखाई देगा मन बनाएगा कई परछाईया
फिर भी मिलके छुप छुप के दूर मंजिल
नज़र तो आ ही जायेगी
शहर के कुछ लोगो ने ना विश्वास किया था मेरे फैसले पर
(अरे नहीं नहीं ये नहीं होगा ये possible नहीं हैं वो possible नहीं हैं ये मत करो वो मत करो । वो करो जो दिल कहता हैं उदयपुर )
शहर के कुछ लोगो ने ना विश्वास किया था मेरे फैसले पर
एक दिन देखना तेरी ये प्यार कि दुआएं
सबका सर झुकायेगी
हंसी उडाते हैं बातें बनाते हैं
सच कहू ऐसे लोग अपनी लाइफ मे
कभी कुछ नहीं बन पाते हैं
बस भरोसा खुद पर रखो
और अपने सपनो से मोहब्बत करो
हर जुबां पे रहो ऐसा काम करो
काम करो नाम करो
10th september opening poem
बस मेरी साँसे चलती रही और नाम का मैं रह गया
लोग घूम घूम कर तेरे घर के चक्कर लगाते रहे
(गौर फरमाइयेगा मेरे वो सरे दोस्त जो किसी न किसी के घर के चक्कर लगाते हैं )
लोग घूम घूम कर तेरे घर के चक्कर लगाते रहे
और मेरी जेब मे बारिश मे धुला हुआ तेरा
अधुरा सा पता रह गया
वो मेरे सामने ही गया था मुझसे दूर
और मैं था की सड़क के एक तरफ़ बस उसे देखता रह गया
जूठ बोलने वाले कहीं से कहीं पहुँच गए
(नही नही वो यहाँ नही रहती,वो वहा रहती हैं पता नही हम नही जानते )
जूठ बोलने वाले कहीं से कहीं पहुँच गए
मैं बस सच बोलता बोलता इस और रह गया
आंधियो के इरादे उस दिन अच्छे तो न थे
न जाने इक दिया जलता कैसे रह गया
वो कुछ बातें होठो से बोलता था
और कुछ जाते जाते आंखों से कह गया
सच कहू तेरे जाने के बाद न जाने मेरे पास क्या रह गया
Tuesday, September 9, 2008
9th september closing poem
साफ़ हो दिल की तुम
हर रंग तुम पर खूब हैं जचता
पर जब पहने तु काला रंग
हाय ! कहाँ फिर तुझ सा कोई हैं दीखता
सीखे कोई सादगी तुमसे
सीखे कोई सुन्दरता तुमसे
सिखने को बहुत सी बातें तुमसे
पर सीखे कोई बोलते बोलते चुप्पी का मतलब तुमसे
सीखे कोई चुप्पी का मतलब
कि क्यों तुझे देखने की हर पल लगी रहती हैं दिल को तलब
सीखे कोई मेरे दिल का मतलब भी तुझसे
(मेरे दिल मे तेरे सिवा कोई रहता नहीं इसलिए )
सीखे कोई मेरे दिल का मतलब भी तुझसे
जबकि इस दिल मे तेरे सिवा रहता नहीं कोई
(पर पता नहीं उदयपुर ये परिया कहाँ रहती हैं )
पर पता नहीं ये परिया कहाँ रहती हैं
शायद मेरे घर से दूर पर
मेरे दिल के करीब रहती हैं
जहाँ कोई खुबसूरत अपनी सादगी का लिबास ओढे
हर पल बस यही कहती हैं कि मैं परी तुझसे बेइन्तहा प्यार करती हूँ
तेरी सोच मे तेरे शब्दों मे
अपने आप को ढूढने की कोशिश करती हूँ
मैं परी परी सी ना जाने कहाँ रहती हूँ
9th september opening poem
ना काम आती हैं दुआ
शायद हम प्यार करने वालो को
उस खुदा से मिली हैं यही सजा
दिन मे नींद आती हैं
पर रात पता नहीं ये कहाँ चली जाती हैं
खुदा ने दीवानों को भी खूब दीवाना किया
मेरा दिल तो ले लिया पर
किसी ने मुझे अपना दिल ना दिया
खता मेरी इतनी कि उसे ख़त लिखने का वक़्त ज़िन्दगी देती नहीं
और वो मेरी इस बात को हलके मे लेती नहीं
मान वो तब जाती हैं जब busy होने के बाद भी
मेरे फ़ोन से उसके फ़ोन पे घंटी जाती हैं
सुन कर मोहब्बत की बातें मुझे रेडियो वाला कहती हैं
पर ये सच हैं कि इस रेडियो वाले को
चुप रहकर भी वो अपनी आँखों से ना जाने क्या क्या कहती हैं
वो बस कभी गुस्से मे ना दिख जाए मुझे
(यही एक दुआ हैं मेरी )
कमबख्त उस फूल वाले की दुकान भी
मेरे स्टूडियो से थोडी दूर लगी रहती हैं
8th september closing poem
कभी नहीं फिर आता हैं
ये मौसम भी उसी की तरह बेवफा निकला
एक आता हैं दूजा चला जाता हैं
एक सफ़र इन गीतों का
हर कोई गुनगुनाना चाहता हैं
पर क्या करे उन रीतो का जो सब वीरान कर जाता हैं
एक सफ़र इन ख्वाहिशो का
जो वक़्त की सुइयों के साथ हर पल आगे बढ़ता जाता हैं
पर क्या करे सफ़र इन अरमानो का
जो जितना आगे बढ़ता हैं
उतने सपने दिखता हैं
एक सफ़र इस पल का
रेत की तरह जो हमेशा फिसलता जाता हैं
पर क्या करे मुक़द्दर का
जो चाहिए मुझको वही मुझसे दूर करता जाता हैं
एक सफ़र इन दिनों का
जो ना जाने आपसे बात करते करते कब बीत जाता हैं
एक सफ़र उस रात का
जो कमबख्त चाँद को अपने साथ लाता हैं
8th september opening poem
मेरे अपने अब अपने अपने रास्ते नापने लगे हैं
पूरी दुनिया मे एक तु ही लगी अपनी सी
सच कहू सपनो सी
सारी परेशानियों को मेरी अपना समझती हैं
लोग कुछ भी कहे मेरे लिए
पर एक तु ही तो हैं जो मुझ पर जान छिड़कती हैं
ये चाँद तारे नदिया सब कागज़ की बाते
तु चुप कराती हैं मुझे जब होती काली राते
क्यों हर रिश्ता अब तेरे आगे हल्का सा हो गया
तु पता नहीं किसकी होगी
पर ये दीवाना सिर्फ तेरा हो गया
6th september closing poem
आप क्या हैं हमारे लिए ये पहचान गए
फिर भी जिंदा हु ये अजब बात हैं
जाने कब से लेकर वो मेरी जान गए
तुम तो आये थे मिलने किसी और से
तुझे देखने के बाद हम दिल से गए ईमान से गए
तेरी अदा करती तुझे दुनिया से जुदा
तेरी वो बालो की लटे
वो तेरा नज़रे झुका झुका कर बार बार बात करना
जो कहना वाही कहना
जो ना कहना वो भी नजरो से कहना
जिस रास्ते पर फ़रिश्ते भी ना पहुंचे
तुझे देखने के बाद सच मच मैं वहा पहुँच गया
सच लोग अब तक पागल कहते थे
उन्हें दीवाना कहने का मौका तुने दिया
6th september opening poem
आँखों को इन आंसुओ की आदत देकर चले गए
मलबे के नीचे आकर मालूम हुआ
हमसे प्यार करने वाले रिश्तो की दीवार गिराकर चले गए
अब लौटेंगे भी तो सिर्फ राख बटोरेंगे
जंगल मे जो आग लगा कर चले गए
मैं था दिन था और एक लम्बा रास्ता
पर जाने क्यों वो मुझे खाई का पता बता कर चले गए
चट्टानों पे आकर ठहरे दो रास्ते
पर वो हमारा दिल चट्टान बना कर चले गए
कुछ किताब के पन्ने हमे ऐसे भी नज़र आये
भरे भरे थे पर हमे खाली नज़र आये
ए मोहब्बत हम आज भी तेरे इंतज़ार मे वही खड़े हैं
जिस गुज़रे वक़्त को तुम मेरा पता बता कर चले गए
5th september opening poem
इंतज़ार के मायने ना होते
चलो कुछ काम जानबूझ कर करती हैं वो
शायद हमारी तरह हमें थोडा सा प्यार करती हैं वो
ये थोडा प्यार ही बहुत सारीज़िन्दगी के लिए
मांगे हंस कर जान भी अपनी
ये दीवाना दे दे उसकी ख़ुशी के लिए
4th september closing poem
धक् धक् की आवाज़ मे आज किसका शोर हैं
दिल मुझे किसे देखने को करता मजबूर हैं
हौले हौले धीरे धीरे किसके कदम मेरे
मेरी तरफ़ बढ़ रहे
मेरे पीछे मुड़ते ही क्यों वो कदम वही थम रहे
ये किसका जादू हैं जो हर पल मेरी खुमारी बढ़ा रहा हैं
ये किसका नशा जो मुझे हर पल बहका रहा
ख़ुद को भुला के उसके अहसासों मे खो जाना ही
मगर हाँ कमबख्त वो चाँद भी उसका दीवाना हैं
कोरा था जो लम्हों का पन्ना आज उसमे एक रंग भर जाना हैं
खाली खाली था जो इस दिल का आइना उसे एक तस्वीर से सजाना हैं
और अब तारो को डोली मे बिठाकर संग उसके अपने घर ले आना हैं
4th september opening poem
बारिश मे अपनी मुठ्ठी मे कुछ बूंदों को कैद करना ही प्यार हैं
वो रोज़ रात मेरे ख्वाब देखना ही प्यार हैं
वो हर बात तेरी हर बार दोहराना
शायद यही प्यार हैं
मेरे लिए कभी किसी से कुछ न सुनना
कोई करे ज्यादा तारीफ़ भी मेरी
तो उसे बस चुप चुप घुरना
कुछ कहना न कभी अपनी जुबां से
पर अपनी आंखों से दिल की हर बात बोलना
क्या यही प्यार हैं
अपनी किताबो मे छुपाकर मुझे ख़त लिखना
और मेरे लिखे कुछ ख़त कुछ अधूरी कविताओ को
छुप छुप कर पुरा करना क्या यही प्यार हैं
चिंता होती नही अपने exams की
बस मैं हर इम्तिहान मे जीतू
उस खुदा से बस यही दुआ करना
क्या यही प्यार हैं ???????
Wednesday, September 3, 2008
3rd september closing poem
नज़रे चुराते हो क्यों दिल बेकरार करते हो
लाख छुपा लो दुनिया से मुझे सब पता हैं
तुम रोज़ मेरे एक sms का पुरे दिन इंतज़ार करते
हो जिस रोज़ नाराज़ हो जाते हो
मुझसे तुम बिग चाय पर टिक जाते
हो मेरी हर बात को सुनते छुप छुप कर
तुम छुप छुप कर मुस्कुराते हो
फ़ोन मुझे करना हैं जानती हो
फ़िर गुस्से मे भी तुम मुझे फ़ोन करती जाती हो
मेरे लिखे ख़त chocolates के raper ये सब नही तो
मेरे साथ बिताये वो चंद पल कितने प्यार से सम्हालती हो
गुस्सा भी तेरा तेरी एक खुबसूरत अदा
हाय गुस्सा भी तेरा तेरी एक खुबसूरत अदा
और ये दीवाना तेरी हर अदा पे फ़िदा
मेरी मोहब्बत कमाल हो तुम
मेरी मोहब्बत कमाल हो तुम
गुस्सा तुम होती हो और दीवाना मुझे बनाती हो
3rd september opening poem
आजकल की मोहब्बत भी शायद पहचान मांगती हैं
छूना मत मेरे जख्मो को तुम
(गौर फरमाइयेगा मेरी जान )
ये पुरानी मोहब्बत हर बात पर मरहम मांगती हैं
कोई अपना ही होगा मेरी परछाई के पीछे
(जब मैं चलता हूँ तो लगता हैं वो मेरे साथ हैं )
कि कोई अपना ही होगा मेरी परछाई के पीछे
फ़िर क्यों वो हर बात पर एक मुकाम मांगती हैं
जानती हैं कि जी सकता नही मैं उसके बिना
जानती हैं कि जी सकता नही मैं उसके बिना
फ़िर भी हर बात पर वो एक सवाल मांगती हैं
नम्बर busy रहे मेरा तो गुस्सा सांतवे आसमान पर
पर उस आसमान को देखकर क्यों वो मेरे लिए दुआ मांगती हैं
मैं उसका हूँ पर ये काम सिर्फ़ मेरा
मैं उसका हूँ पर ये काम सिर्फ़ मेरा
काम हैं तो हम हमारी मोहब्बत ये भी जानती हैं
फ़िर कहते ही चुपचाप मुस्कुराती हैं
बस फ़िर कुछ न कह पाती हैं
2nd september closing poem
हमसे रूठना हमे सताना हाय इक अदा वो आपकी
हर बात पे हँसना तो हर बात पे मुस्कुरा देना
कभी बात बात पर तेरा मुह फुलाना
गुस्सा ऐसा कि फूलो को भी मनाते मनाते पसीना आ जाए
कभी बड़ी से बड़ी बात हंस कर माफ़ कर दे
कभी छोटी सी गलती को भी तु बड़ा बताये
तेरी बातो से ये दिल धड़कता हैं
तेरी साँसों से ही अब इन साँसों का चलना हैं
हर रात नींद मे छुप छुप कर तेरा मुझे misscall करना
कभी mere call karne पर तेरा phone cut कर देना
अपनी शर्मीली नजरो से सुर्ख होठो से
हाय मेरे लिखे खतो को ना जाने कितनी बार चूमना
क्या करे क्या क्या ना करे
दिल बयान करता नहीं अफ़साने तेरे
दिल बार बार बस यही कहता जाता हैं
हर कोई जो इस पल रडियो के बिलकुल पास चिपका हुआ हैं
वो अंकित को इस पुरे शहर मे अपना सा नज़र आता हैं
2nd september opening poem
वो मेरे हाथ पर हथेली तेरी
सब कुछ कहने को बेताब तेरे वो होठ
पर उस tubelight की dim light मे बेबसी तेरी
डर किसी के आने का डर तेरा मेरा हो जाने का
हर फलसफा यादो का मुझे बस बहुत याद आता हैं
जब भी हर शाम चाय का कप लेकर एक साया
मेरे घर की सीढियों से मेरी छत की तरफ़ जाता हैं
जब भी कोई प्यार का मतलब पूछता हैं
दिल बहुत कुछ कहना चाहता हैं
मगर तुझे देखने के बाद हमेशा चुप हो जाता हैं
हमेशा होता यही कि ये कहना वो कहना
दिन भर की सारी बात उसे बताना
पर कौन खुशनसीब उसे सब कुछ बता पाता हैं
चलो अब के मिलेंगे तो बात करेंगे
वरना चंद मुलाकातों का मतलब ये प्यार कब किसे बता पाता हैं
वो काजल तेरा मेहंदी तेरी
वो मेरे हाथ पर हथेली तेरी
Monday, September 1, 2008
1st september closing poem
तुम एक गुमनाम हो यही लिख दो
मेरी किस्मत मे इंतज़ार हैं लेकिन यार
अपनी पुरी उम्र ना लिखो बस
अपनी ज़िन्दगी की एक शाम ही लिख दो
ज़रूरी नही मिल जाए सुकून हर किसी को
बैचैनियो की एक किताब मेरे नाम भी लिख दो
जानता हूँ तेरे जाने के बाद मुझे तनहा ही रहना हैं
पुरा दिन ना सही एक पल ही मेरे नाम लिख दो
चलो हम मानते हैं सज़ा के काबिल हैं हम
कोई इनाम ना लिखो तो कोई इल्जाम ही लिख दो
रात चाँद तेरा दीदार करने मेरी छत पर टहलता हैं
उसकी चाँदनी के नाम बस एक बात लिख दो
मैं लिखना चाहू तो लिख लू पुरी किताब तुझ पे
फ़िर चाहे कुछ भी कहे कुछ भी सोचे हँसता रहे ये ज़माना मुझ पर
लेकिन लिखना तो यार शायरों का काम हैं
मैं दीवाना हूँ दीवाने के नाम एक पैगाम
अपने मोबाइल पे ठीक इसी पल लिख दो
1st september opening poem
न जाने क्या बात थी उसमे जो मुझे मुझ ही से चुराने लगा
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......................................... (incomplete )