एक सफ़र इन लम्हों का
कभी नहीं फिर आता हैं
ये मौसम भी उसी की तरह बेवफा निकला
एक आता हैं दूजा चला जाता हैं
एक सफ़र इन गीतों का
हर कोई गुनगुनाना चाहता हैं
पर क्या करे उन रीतो का जो सब वीरान कर जाता हैं
एक सफ़र इन ख्वाहिशो का
जो वक़्त की सुइयों के साथ हर पल आगे बढ़ता जाता हैं
पर क्या करे सफ़र इन अरमानो का
जो जितना आगे बढ़ता हैं
उतने सपने दिखता हैं
एक सफ़र इस पल का
रेत की तरह जो हमेशा फिसलता जाता हैं
पर क्या करे मुक़द्दर का
जो चाहिए मुझको वही मुझसे दूर करता जाता हैं
एक सफ़र इन दिनों का
जो ना जाने आपसे बात करते करते कब बीत जाता हैं
एक सफ़र उस रात का
जो कमबख्त चाँद को अपने साथ लाता हैं
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