Monday, September 22, 2008

19th september opening poem

ज़िन्दगी को ना बना ले वो सज़ा मेरे बाद
हौंसला उन्हें देना खुदा मेरे बाद
क्यूंकि वो आजकल लिखने लगी हैं मेरा नाम
तेरे नाम के बाद
कौन घूँघट को उठाएगा उसे चाँद कहकर
कौन करेगा वफ़ा की बातें मेरे बाद
आजकल खाने की थाली भी उससे नाराज़ सी रहती हैं
वो अब खाना भी खाती हैं मेरे खाने के बाद
फ़िर ज़माने मे मोहब्बत की कोई परछाई न होगी
भले ही ये सूरज रोज़ निकलेगा
मगर फ़िर भी प्यार करने वालो की दास्तान न होंगी
ए खुदा उसका बहुत ध्यान रखना मेरे जाने के बाद
रोएगी मोहब्बत भी सिसकिया ले लेकर
पढ़ाएगी बेवफाई वफ़ा का पाठ एक दिन
देखना मेरे जाने के बाद

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