Wednesday, September 24, 2008

24th september closing poem

आंखों से कहो खामोश रहे
सारी बातें मुझे बिन बोले समझ आती हैं
मैं वैसे ही कहा चुप रहता हूँ
ऐसे ना देखो परेशानियों का ये सबब दे जाती हैं
तुम्हे जिद हैं कि मैं कह दू
मुझे जिद हैं कि तुम कह दो
पर मोहब्बत कहा मोहताज़ हैं लफ्जों की
मोहब्बत तो हमारी धडकनों मे हैं शामिल
मेरी आंखों मे पलता वो हसीं जज्बा
जिसे सवाय मेरे कोई और समझ ना पाया
ना इस मोहब्बत की कोई सूरत हैं
ना कमबख्त इसका हैं कोई पैमाना
बस मोहब्बत का दुश्मन ये सारा ज़माना
मैं जानता हूँ अब मेरे बारे मे हर कहीं बात होती हैं
(वो ऐसा हैं वो वैसा हैं ऐसा ही हैं वैसा हैं )
कि मैं जानता हूँ अब मेरे बारे मे हर कहीं बात होती हैं
कभी अच्छी तो कभी बुरी होती हैं
जो कहना जिसको कहे
बस तु हमेशा मेरे दिल मे रहे
क्यूंकि बातें हमेशा उनकी होती हैं
जो बातो के होते हैं लायक
बाकि ये शहर बखूबी जानता हैं
मोहब्बत मे कौन लायक और कौन नालायक

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