Friday, September 12, 2008

12 th september closing poem

हर शाम की तरह आज भी तेरा इंतज़ार किया हैं
इन आंखों मे ख्वाब मे भी सिर्फ़ तेरा इंतज़ार किया हैं
ना आ सकेगा तो जालिम इत्तेला तो दे
(मैं busy थी मैं busy था काम बहुत हैं वक्त मिलते ही बताता हूँ )
ना आ सकेगा तो जालिम इत्तेला तो दे
ताकि ये दिल तेरी यादो को भुला तो दे
अपनो को भुलाकर सब कुछ छोड़कर
एक तुझ पर ही ऐतबार किया हैं
सच कहू मैंने इंतज़ार से भी ज्यादा तेरा इंतज़ार किया हैं
तू कांटो पर भी सुलाता तो शिकवा न करते
न शिकायत करते न किसी को रुसवा करते
ज़िन्दगी मांगी जो किसी ने हमसे
ज़िन्दगी ने मन ही मन सही पर प्यार किया हैं
और इस दीवाने ने हर शाम की तरह सिर्फ़ तेरा इंतज़ार किया हैं
(i wishकी आप अपनी ज़िन्दगी मे किसी का भी इंतज़ार ज्यादा न करे उदयपुर जिसको भी आप चाहे वो आपको जल्दी से मिल जाए क्यूंकि ये इंतज़ार बहुत ख़राब होता हैं इंतज़ार सपनो के पुरा होने का , इंतज़ार मोहब्बत के घर आने का , इंतज़ार नए दोस्त के मिलने का , इंतज़ार ये कहने का की मैं उसे कह पाऊंगा या नही वो मुझे मिलेगी या नही ,आप सबसे यही कहूँगा यही wish करूँगा की आप लोग जो भी सपना देखते हैं आँख खोलने से सोने तक वो जो godजी हैं न वो आपको जल्दी से दे दे )

No comments: