चलो आज तुम कोई पैगाम ही लिख दो
तुम एक गुमनाम हो यही लिख दो
मेरी किस्मत मे इंतज़ार हैं लेकिन यार
अपनी पुरी उम्र ना लिखो बस
अपनी ज़िन्दगी की एक शाम ही लिख दो
ज़रूरी नही मिल जाए सुकून हर किसी को
बैचैनियो की एक किताब मेरे नाम भी लिख दो
जानता हूँ तेरे जाने के बाद मुझे तनहा ही रहना हैं
पुरा दिन ना सही एक पल ही मेरे नाम लिख दो
चलो हम मानते हैं सज़ा के काबिल हैं हम
कोई इनाम ना लिखो तो कोई इल्जाम ही लिख दो
रात चाँद तेरा दीदार करने मेरी छत पर टहलता हैं
उसकी चाँदनी के नाम बस एक बात लिख दो
मैं लिखना चाहू तो लिख लू पुरी किताब तुझ पे
फ़िर चाहे कुछ भी कहे कुछ भी सोचे हँसता रहे ये ज़माना मुझ पर
लेकिन लिखना तो यार शायरों का काम हैं
मैं दीवाना हूँ दीवाने के नाम एक पैगाम
अपने मोबाइल पे ठीक इसी पल लिख दो
No comments:
Post a Comment