Friday, September 26, 2008

26th september opening poem

तू खुबसूरत इसका तुझे गुमान हैं
होंगे तेरे कई दीवाने पर तेरा ये दीवाना भी कमाल
तुझे लगता ऐसा की दीदार करना तेरा आसान नही

(तुम कैसे आओगे मुझे देखने , मैं तुम्हे मिलूंगी ही नही )
तुझे लगता ऐसा की तेरा दीदार करना आसान नही
मुझे लगता ये सबसे आसान हैं
(क्या प्रॉब्लम क्या हैं आपका )
तुझे लगता ऐसा की तेरा दीदार करना आसान नही मुझे लगता ये सबसे आसान हैं
मैं कोई बदल नही जिसे देख तू खिड़की बंद कर ले
न मैं कोई चाँद जो रात होने का इंतज़ार करे
मैं तो पागल तेरी पहली मुलाकात के बाद हो गया
तेरा पता नही पर मुझे तुझसे प्यार हो गया
सोचती होगी की जब बंद कर लेती हूँ घर के सब खिड़की दरवाजे
तो दीवाने को हम नज़र कहाँ से आते
मैं हूँ वो आइना तेरे कमरे का
जो छुप छुप के तेरा दीदार करता हैं
तेरी हर हरकत को अपनी आंखों में कैद करता हैं
तेरा पता नही पर सच तुझसे बहुत प्यार करता हैं

No comments: