Tuesday, September 9, 2008

9th september opening poem

अब ना दावा काम आती हैं
ना काम आती हैं दुआ
शायद हम प्यार करने वालो को
उस खुदा से मिली हैं यही सजा
दिन मे नींद आती हैं
पर रात पता नहीं ये कहाँ चली जाती हैं
खुदा ने दीवानों को भी खूब दीवाना किया
मेरा दिल तो ले लिया पर
किसी ने मुझे अपना दिल ना दिया
खता मेरी इतनी कि उसे ख़त लिखने का वक़्त ज़िन्दगी देती नहीं
और वो मेरी इस बात को हलके मे लेती नहीं
मान वो तब जाती हैं जब busy होने के बाद भी
मेरे फ़ोन से उसके फ़ोन पे घंटी जाती हैं
सुन कर मोहब्बत की बातें मुझे रेडियो वाला कहती हैं
पर ये सच हैं कि इस रेडियो वाले को
चुप रहकर भी वो अपनी आँखों से ना जाने क्या क्या कहती हैं
वो बस कभी गुस्से मे ना दिख जाए मुझे
(यही एक दुआ हैं मेरी )
कमबख्त उस फूल वाले की दुकान भी
मेरे स्टूडियो से थोडी दूर लगी रहती हैं

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