Wednesday, September 3, 2008

2nd september opening poem

वो काजल तेरा मेहंदी तेरी
वो मेरे हाथ पर हथेली तेरी
सब कुछ कहने को बेताब तेरे वो होठ

पर उस tubelight की dim light मे बेबसी तेरी
डर किसी के आने का डर तेरा मेरा हो जाने का
हर फलसफा यादो का मुझे बस बहुत याद आता हैं
जब भी हर शाम चाय का कप लेकर एक साया
मेरे घर की सीढियों से मेरी छत की तरफ़ जाता हैं
जब भी कोई प्यार का मतलब पूछता हैं
दिल बहुत कुछ कहना चाहता हैं
मगर तुझे देखने के बाद हमेशा चुप हो जाता हैं
हमेशा होता यही कि ये कहना वो कहना
दिन भर की सारी बात उसे बताना
पर कौन खुशनसीब उसे सब कुछ बता पाता हैं
चलो अब के मिलेंगे तो बात करेंगे
वरना चंद मुलाकातों का मतलब ये प्यार कब किसे बता पाता हैं
वो काजल तेरा मेहंदी तेरी
वो मेरे हाथ पर हथेली तेरी

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