Wednesday, September 24, 2008

24th september opening poem

कभी तेरी हर बात का ज़वाब होता हैं
कभी कुछ कहने को नही होता
कभी ऐसे सवाल करता हैं ये दिल
जिनका कोई जवाब नही होता
चलो आज एक बात दिल पूछता तुम से
हम रूठ जाए तो क्या करोगी
रूठ कर तेरा फ़ोन न उठाये तो क्या करोगी
मैं जब भी करता ये जान कर नही करता
जो दिल हुक्म करता वही मैं हूँ करता
कभी शहर छोड़ जाऊ तेरा तो क्या करोगी
सिर्फ़ एक अहसास सा बन जाऊ मैं तो क्या करोगी
करोगी वही जो इस पल कर रही हो
गुस्से मे कसम से क्या लग रही हो
जब जानती हो ज़रूरी मैं तेरे लिए
तो फ़िर क्यों गुस्सा कर रही हो
ना जाऊँगा तुमसे दूर कभी
वादा ये पक्का करता अभी

No comments: