कभी मैं खुद से खफा हो जाऊ
कि कभी मैं खुद से खफा हो जाता हूँ
और फ़िर बोलते बोलते चुप हो जाता हूँ
सोचता हूँ कि उस पल मैं किसी को नज़र ना आऊ
और फ़िर खुद से ही लिपट जाऊ
इस ठिठुरे हुए अहसास से कहीं दूर निकल जाऊ
पर कहाँ निकल पाता हूँ
मैं वो बर्फ हु कि
तु जो छू ले अपने होठो से
तो पिघल जाऊ मैं
तेरी चाहत मे कही इतना ना बदल जाऊ मैं
लिखने का सोचु किसी और विषय पर
और कलम से पुरे पन्ने पर तेरा नाम लिख जाऊ मैं
ये जाना पहचाना शहर अब लगता खुद से अनजाना हैं
जानता हूँ तुझे प्यार करता ये सिर्फ़ एक दीवाना हैं
दीवानगी मे कहीं इतना ना खो जाऊ मैं
सोचता हूँ कुछ पल मिले कि तेरे सिवा किसी को ना नज़र
कि तु कभी ना जाना इस अहसास से दूर
(अरे smile करना तो बंद करो )
कि तु कभी ना जाना इस अहसास से दूर
ऐसा ना हो कि कहीं अपनी ही बगल से निकल जाऊ मैं
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