Tuesday, September 9, 2008

8th september opening poem

अब लब्ज़ होठो तक आकर काम्पने लगे हैं
मेरे अपने अब अपने अपने रास्ते नापने लगे हैं
पूरी दुनिया मे एक तु ही लगी अपनी सी
सच कहू सपनो सी
सारी परेशानियों को मेरी अपना समझती हैं
लोग कुछ भी कहे मेरे लिए
पर एक तु ही तो हैं जो मुझ पर जान छिड़कती हैं
ये चाँद तारे नदिया सब कागज़ की बाते
तु चुप कराती हैं मुझे जब होती काली राते
क्यों हर रिश्ता अब तेरे आगे हल्का सा हो गया
तु पता नहीं किसकी होगी
पर ये दीवाना सिर्फ तेरा हो गया

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