Tuesday, September 9, 2008

4th september opening poem


बारिश मे अपनी मुठ्ठी मे कुछ बूंदों को कैद करना ही प्यार हैं

वो रोज़ रात मेरे ख्वाब देखना ही प्यार हैं

वो हर बात तेरी हर बार दोहराना

शायद यही प्यार हैं

मेरे लिए कभी किसी से कुछ न सुनना

कोई करे ज्यादा तारीफ़ भी मेरी

तो उसे बस चुप चुप घुरना

कुछ कहना न कभी अपनी जुबां से

पर अपनी आंखों से दिल की हर बात बोलना

क्या यही प्यार हैं

अपनी किताबो मे छुपाकर मुझे ख़त लिखना

और मेरे लिखे कुछ ख़त कुछ अधूरी कविताओ को

छुप छुप कर पुरा करना क्या यही प्यार हैं

चिंता होती नही अपने exams की

बस मैं हर इम्तिहान मे जीतू

उस खुदा से बस यही दुआ करना

क्या यही प्यार हैं ???????

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