Wednesday, September 17, 2008

16th september opening poem

हथेली पर जिसे लिख कर मिटाती हो
वो नाम मेरा ही तो हैं
(गौर फरमाइयेगा )
हथेली पर जिसे लिख कर मिटाती हो
वो नाम मेरा ही तो हैं

रोज़ मेहंदी जिसके नाम की रचाती हो
वो नाम मेरा ही तो हैं
रोज़ फ़ोन पर करती हो जिससे घंटो बातें बहुत सारा गुस्सा
वो नाम मेरा ही तो हैं
सुन के जिसको पलके तेरी झुक जाती हैं
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरे होठो मे जो छुप कर कांप रहा हैं
तेरी धड़कन मे दिल धड़कने के साथ गूंज रहा हैं
गूंज कर हर बार मेरा पूछ रहा हैं पता
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरी पूजा मे तेरी हर दुआ मे
झिलमिलाती शाम मे
हर उस सुबह मे
वो बारिश की बूंदों मे
वो नाम मेरा ही तो हैं
अपना नाम जिससे जोड़ा हैं तुने
दुनिया की हर रस्म को तोडा हैं तुने
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरे नाम के बिना अधुरा सिर्फ़ एक नाम हैं
वो नाम मेरा ही तो हैं

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