Thursday, September 11, 2008

11th september closing poem

इश्क अगर कोरे कागज़ पर शब्दों का हो
तो वो आपसे हो
हम बहुत तडपे अब तडपने की अदा किसी कि हो
तो वो आपसे हो
तमन्ना हैं साँसों की
आप बन गए ज़िन्दगी
आज बारिश मे भीग जाऊ
अगर बारिश तेरे घर के सामने हो
बारिश का बरसना और थामना गर आपसे हो
मैं दीवानापन कभी छोडू न अपना
(वो कहती हैं तुम दीवाने हो गए हो बहुत दीवाने हो ऐसे मत किया करो अच्छा नही लगता लोग क्या कहेंगे )
कि मैं दीवानापन कभी छोडू न अपना
गर ये दीवानापन आपसे हो
सज़ा प्यार की चाहे जो दे देना
पर मौत मेरी हो तो बस आपसे हो
इश्क अगर कोरे कागज़ पर फडफडाना चाहे
ये उंगलिया अगर कलम उठाकर कुछ लिखना चाहे तो लिख ना पाए
बस लिखे वही जो कुछ आपसे हो

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