सब आने वाले बहलाकर चले गए
आँखों को इन आंसुओ की आदत देकर चले गए
मलबे के नीचे आकर मालूम हुआ
हमसे प्यार करने वाले रिश्तो की दीवार गिराकर चले गए
अब लौटेंगे भी तो सिर्फ राख बटोरेंगे
जंगल मे जो आग लगा कर चले गए
मैं था दिन था और एक लम्बा रास्ता
पर जाने क्यों वो मुझे खाई का पता बता कर चले गए
चट्टानों पे आकर ठहरे दो रास्ते
पर वो हमारा दिल चट्टान बना कर चले गए
कुछ किताब के पन्ने हमे ऐसे भी नज़र आये
भरे भरे थे पर हमे खाली नज़र आये
ए मोहब्बत हम आज भी तेरे इंतज़ार मे वही खड़े हैं
जिस गुज़रे वक़्त को तुम मेरा पता बता कर चले गए
No comments:
Post a Comment