क्या कहू कैसे कहू दिल कि बात अपनी धडकनों से कैसे बाया करू
धक् धक् की आवाज़ मे आज किसका शोर हैं
दिल मुझे किसे देखने को करता मजबूर हैं
हौले हौले धीरे धीरे किसके कदम मेरे
मेरी तरफ़ बढ़ रहे
मेरे पीछे मुड़ते ही क्यों वो कदम वही थम रहे
ये किसका जादू हैं जो हर पल मेरी खुमारी बढ़ा रहा हैं
ये किसका नशा जो मुझे हर पल बहका रहा
ख़ुद को भुला के उसके अहसासों मे खो जाना ही
मगर हाँ कमबख्त वो चाँद भी उसका दीवाना हैं
कोरा था जो लम्हों का पन्ना आज उसमे एक रंग भर जाना हैं
खाली खाली था जो इस दिल का आइना उसे एक तस्वीर से सजाना हैं
और अब तारो को डोली मे बिठाकर संग उसके अपने घर ले आना हैं
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