Monday, September 22, 2008

22nd september closing poem

तुम बिन मैंने जीवन सारा
कैसे गुज़ारा सोचो तुम
तुम संग सजना प्यार की बाज़ी
मैं क्यों हारा सोचो तुम
देकर अपना खून हैं सींचा
प्यार के गुलशन को लेकिन
(ऐसा होता होगा ना आपके साथ भी , किसी से बेइंतेहा मोहब्बत कर लो और वो मिले ही ना )
देकर अपना खून हैं सींचा
प्यार के गुलशन को लेकिन

सुख गई क्यों बहते बहते
वो प्यार की धारा सोचो तो
मेरी तरह से क्यों ना आख़िर कोई तुमसे प्यार करे
(कोई कर ही नही सकता जी जैसी मोहब्बत हम आपको करते हैं )
कि मेरी तरह से क्यों ना आख़िर कोई तुमसे प्यार करे
मेरी जगह पर तुम जो होते बोलो ज़रा क्या करते
बात इतनी सी लेकिन ये कही नही जाती
क्यों ऐसा ज़रा सोचो तो

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