Wednesday, September 3, 2008

3rd september opening poem

अरमान टूटे तो सिसकिया अश्को के जाम मांगती हैं
आजकल की मोहब्बत भी शायद पहचान मांगती हैं
छूना मत मेरे जख्मो को तुम
(गौर फरमाइयेगा मेरी जान )
ये पुरानी मोहब्बत हर बात पर मरहम मांगती हैं
कोई अपना ही होगा मेरी परछाई के पीछे
(जब मैं चलता हूँ तो लगता हैं वो मेरे साथ हैं )
कि कोई अपना ही होगा मेरी परछाई के पीछे
फ़िर क्यों वो हर बात पर एक मुकाम मांगती हैं
जानती हैं कि जी सकता नही मैं उसके बिना
जानती हैं कि जी सकता नही मैं उसके बिना
फ़िर भी हर बात पर वो एक सवाल मांगती हैं
नम्बर busy रहे मेरा तो गुस्सा सांतवे आसमान पर
पर उस आसमान को देखकर क्यों वो मेरे लिए दुआ मांगती हैं
मैं उसका हूँ पर ये काम सिर्फ़ मेरा
मैं उसका हूँ पर ये काम सिर्फ़ मेरा
काम हैं तो हम हमारी मोहब्बत ये भी जानती हैं
फ़िर कहते ही चुपचाप मुस्कुराती हैं
बस फ़िर कुछ न कह पाती हैं

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