Friday, September 26, 2008

26th september closing poem

(वो पूछते हैं कितनी देर तक मैं उनका इंतज़ार कर सकता हूँ
वो पूछते हैं कितनी देर तक मैं उन्हें प्यार कर सकता हूँ
वो पूछते हैं कितनी देर तक मैं उन पर कुछ लिख सकता हूँ
वो पूछते हैं कि कितनी देर तक मैं उन्हें सुन सकता हूँ
ये तो अब आप जानते हैं उदयपुर कि आपका और हमारा अब क्या रिश्ता हैं और मैं बस यही कहूँगा कि )
जैसे कोई दुआ दिल में हो
कि जैसे कोई दुआ दिल में हो
जैसे कोई शिकवा न कभी तुमसे हो
जैसे मोहब्बत हो तुम
और तुम्हे देख कर जैसे हम कहीं गुम
वैसा कोई और तुम सा न हो
न हो कोई जिसे देखने का मन होता हो
ख्वाब बहुत से आते हैं
पर ऐसा कोई ख्वाब नही जिसमे तू न होता
मेरी मोहब्बत का इम्तिहान न ले खुबसूरत
कौन कहता हैं कि कांटो को दिल नही होता
दिल होता हैं कांटो को भी
पर जुबां नही होती सबकी एक जैसी
दुनिया में कोई कितना भी खुबसूरत हो पर तुझ सा न हो

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