Saturday, October 4, 2008

27th september opening poem

कहाँ मालूम था ये प्यार हमको इतना सताएगा
जो पसंद आएगा वही फ़ोन नही लगायेगा
दिन बीतेगा तेरे इंतज़ार मे
न इस दिल को रात मे करार आएगा
सुनो इस दिल का कहा मानों एक काम कर दो
(रोज़ दिल हम पर हुक्म चलाताहैं कभी कभी हम दिल पर हुक्म चलते हैं )
सुनो इस दिल का कहा मानों एक काम कर दो
एक बेनाम सी मोहब्बत मेरे नाम कर दो
मेरी किस्मत पर बस इतना अहसान कर दो
किसी दिन अपनी शाम मे हमे शामिल कर लो
या फ़िर मेरी एक सुबह को ही तुम शाम कर दो
मैं जानता हूँ तू हैं खुबसूरत बहुत
पर चाहने वालो का क्यों बुरा हाल करती हैं
मैं तो तेरा चाहने वाला भी नही
फ़िर क्यों आंखों आंखों मे तू इतने सवाल करती हैं
(तो फ़िर मैं कौन )
मैं तो दीवाना तेरी उस तस्वीर का हो गया
दिल मेरा था २५ सालो से अचानक ये तेरा हो गया

2 comments:

Anonymous said...

hi this is a very nice poem for tat week ......... u kn9w its very difficult to sort out one poem very gud in a week because all r gud ............. AAP LIKHNA MAT CHHODNA VARNA LISTENERS READ KRNA CHHOD DENGE ........... take care

POOJA BAGDI said...

hi ankit....
ur all poeams are gr8 but this is ur best poem which i like most.....
keep writing poems.............
pooja