Monday, October 6, 2008

1st october opening poem

मैं बंद कर दू सवाल करना गर तू जवाब देना शुरू कर दे
(पहले वो बहुत पूछती थी अब मैं बहुत पूछ्ता हूँ )
मैं बंद कर दू सवाल करना गर तू जवाब देना शुरू कर दे
सब चलते मोहब्बत के सफर मे
तू संग चल तो अपना हर सफर मैं तुझ पर नज़र कर दू
हम्म मैं सवाल करना बंद कर दू
चलन चाहते मेरे संग तो आकाश बनके चलना
मैं धरती बनके तुम को ही साथ लूँगा
जानता हूँ ये आकाश धरती मिलते नही
मगर मैं तुमको छू ही लूँगा
दूर रहकर भी होता हैं दिलो मे प्यार का सहारा
मैं लौटना चाहू तो भी लौटा न सकूँगा
पर ये न समझना कि मुझे मोहब्बत नही
बस एक इसी रिश्ते पर मैं कोई बात बर्दाश्त नही करूँगा
करूँगा पुरी दुनिया से सिर्फ़ तेरी ही बातें
और सच अपनी इस बात से कभी पीछे न हटूंगा
मैं जानता हूँ तेरी तस्वीर अपने होठ हिलती नही
पर मैं तेरी तस्वीर को टकटकी लगाये देखूंगा

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