कह रहा हूँ ये ग़ज़ल तुझको सुनाने के लिए
(आजकल अपनी हर बात तुझको सुनाने के लिए ही होती हैं )
तू मगर बेताब उठ कर जाने के लिए
इल्तजा हैं ये मेरी थोडी तो मेर क़द्र कर
कहते हैं लोग अब मैं भी बड़ा कीमती हूँ ज़माने के लिए
बारिश में बीमार होते हुए भी मैं भीगता रहा
तू बता और मैं क्या करू तुझको लुभाने के लिए
मेरे सब अहसास तेरे लिए
तू इसको ज़रा महसूस तो कर
प्यार कर सकता नही मैं यूँ जताने के लिए
लिखना विखना न मुझे पहले आता था
न मुझे अब आता हैं
बस शब्दों को जोड़ता रहता हूँ
तुझे सुनाने सुनाने के लिए
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