Monday, October 27, 2008

14 th october opening poem

नज़र में प्यार तो लहजे में सादगी रखना
हम अजनबी ही सही हमसे भी थोडी दोस्ती रखना
मिले दिल हमसे तो ठीक
नही तो बस अपनी आँखें हमसे भी मिलाये रखना
कभी बोलने में न हमसे कुछ कमी रखना
(ये कहू उससे ? उसे क्या लगेगा ? वो क्या सोचेगी )
कभी बोलने में न हमसे कुछ कमी रखना
मिला के हाथ जो दिल कभी न मिले तुम्हारे किसी से
(ऐसा कहते हैं कि वो मेरा दोस्त हैं वो मेरा दोस्त हैं हाथ मिलाने वाला हर शक्स दोस्त नही होता )
कि मिला के हाथ जो दिल कभी न मिले तुम्हारे किसी से
बहुत ज़रूरी हैं जिंदगी में थोड़े फासले रखना
इस दीवाने की इस बात पर ज़रा गौर करना
तुम्हारी बात का जो मतलब ही बदल डाले
तुम ऐसे यारो से ऐसे शायरों से
शायरी को दूर रखना
कि तुम्हारी बात का जो मतलब ही बदल डाले
तुम ऐसे शायरों से शायरी को दूर रखना
नज़र से जब तुम्हे गिरा दे ये दुनिया वाले
इक दिल हैं इंतज़ार में तेरे
बस मेरी इस आखिरी बात पर यकीं रखना
नज़र में प्यार तो लहजे में सादगी रखना
चलो हम रेडियो वाले थोड़े अजनबी ही सही
थोडी सी दोस्ती तो हमसे भी रखना

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