Tuesday, October 28, 2008

27th october opening poem

बहारो में पले हैं कभी मोहब्बत का मौसम नही देखा
हम जुल्फों से खेले हैं कभी किसी बात का गम नही देखा
बिता कर रात सर्दी में मोहब्बत करने वालो को
कभी चाँद की गोदी में सर रखते नही देखा
चाँद ख़ुद तेरा दीवाना सा हो गया
शायद इसीलिए कई रातो से हमने चाँद न देखा
तारे सारे ख़ुद को तेरी बिंदी समझते हैं
इसीलिए हमने कभी तुझे बिंदी लगाते देखा नही
और शहर हो गया सारा तेरा दीवाना सा
हमने दीवानों को कभी सोते न देखा
देखा तो बस तुझे देखा
और बस तुझे सोचा

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