Monday, October 6, 2008

3rd october opening poem

कुदरत के करिश्मे मे अगर ये रात न होती
ख्वाबो में भी फ़िर उनसे मुलाकात न होती
कुछ लम्हे ही सही हमे करार आता हैं
तेरा वो छूना मुझे रह रह कर याद आता हैं
गौर फरमाइयेगा उदयपुर
ए काश ये जिंदगी मेरे बस में होती
(जो हम सोचते हैं life में बस वही नही होता तो बार-२ ये ख्याल आता हैं कि)
ए काश ये जिंदगी मेरे बस में होती

तो ख्वाबो में ही सही हमारी बहोत बात होती
हर लम्हा तुझे देखता फ़िर सोने की जगह मेरी जागने की ख्वाहिश होती
एक दिन अपना बना लूँगा तुझे
(अब आप smile करना बंद करे तो हम कुछ कहे )
एक दिन अपना बना लूँगा तुझे
फ़िर उस अहसास से जुदा न कर पायेगा कोई मुझे
हर हकीक़त में या पर हकीक़त में
तेरे पास होने की एक आस हैं
सच में न सही तू उस प्यारे से ख्वाब में ही सही पर
मेरी बांहों में मेरी आँखों के एकदम पास हैं

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