Tuesday, October 14, 2008

8th october opening poem

मुझे याद कोई दुआ नही
मेरे हमसफ़र अभी सोच ले
तू मेरे हाथो में लिखा नही
मेरे हमसफ़र अभी सोच ले
अभी रास्ता भी नही धूल में
अभी फिजा भी नही भूल में
अभी मुझको तुझसे गिला नही
मेरे हमसफ़र अभी सोच ले
मैं जनम जनम से बोला नही
(वैसे मैं बहुत बातें करता हूँ मगर जब तू सामने आती हैं तो कुछ बोला नही जाता )
कि मैं जनम जनम से बोला नही
राज़ दिल का किसी से खोला नही
मैं कभी खुल के हंसा नही
अभी तक कहीं खूबसूरती में फसा नही
न जाने तू कहाँ से पसंद आ गई
चंद मुलाकातों में दिल के इतना पास आ गई
अब आई हैं तो यही रहना
(ये धमकी हैं इस लाइन में )
कि अब आई हैं तो यही रहना
तेरे बिना मुझे कुछ नही कहना

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