Monday, October 27, 2008

18 th october opening poem

तेरी तस्वीर मेरी आंखों में बसी क्यों हैं
जिधर देखू उधर बस तू ही तू क्यों हैं
तेरी यादो से जुड़ी हैं मेरी तकदीर लेकिन
तुझे न पाकर मेरी तकदीर भला रूठी क्यों हैं
मुझको हैं ख़बर कि आसां नही तुझे हासिल करना
फ़िर भी कमबख्त ये इंतज़ार ये बेरुखी क्यों हैं
बरसो गुज़र गए मेरे इंतज़ार में लेकिन
मेरी इन बाहों को आज भी तेरा इंतज़ार क्यों हैं
तेरी चाहत की कसम खून के आंसू रोया हूँ
अब कुछ बाकी नही फ़िर जान जान करता हूँ
जान जान कर के क्यों न मैं क्यों कई रातो से हुआ
ख़त्म हुआ मेरा ये अफसाना
एक बात बता दू लेकिन
अंजाम न मुझे मालूम
फ़िर ये मोहब्बत क्यों हैं

No comments: