Saturday, October 4, 2008

29th september opening poem

तेरा यूँ पास आना
मुस्कुराके मुझे कभी गले लगना
पल को थाम कर एक पल मे वापस चले जाना
और उस एक पल मे ही मुझे अपना दीवाना बनाना
साँसों को रोक कर तेरा बस पल दो पल के लिए चुप हो जाना
और सच उन दो पलो मे मुझसे मेरे दिल का कोई भी हाल कभी बाया ना कर पाना
सालो बाद मिलना मानो मेरे सारे ख्वाब हकीक़त कर जाना
दूरियों को नजदीकिया बताना
फ़िर भी पास ना आना
उस एक पल मे मुझे न जाने क्या मिल जाना
जैसे किसी बंद किताब के पन्नो का ऐसे ही उलटते जाना
बंधन ये प्यार का
कभी अनजाना कभी जाना पहचाना
कभी घर मे अपनो को भूल जन
कभी अपनो के बीच तुझे देखते जाना
तेरी यादो को हर पल गले से लगाना
और जब तनहा हो तब तुझसे बतियाते जाना
(ये प्यार हैं उदयपुर ये मोहब्बत हैं जो आपको एक पल के लिए भी कभी अकेला नही छोड़ती और आप अकेला होना भी चाहे तो भी आपको अकेला नही छोड़ती )

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