दिन महीने कई साल फ़िर बदले
मगर घर के कुछ कोने कभी न बदले
आज सुबह मैंने मेरी अलमारी जब खोली
तेरे ख़त तेरे खातो की वो खुशबु मुझसे आकर बोली
अब याद नही आती न
पहले तो बड़ा कहते थे
मेरे हमजोली ओ मेरे हमजोली
मैं बस मुस्कुरा गया कुछ जवाब न दे पाया
ख़ुद से तो रोज़ करता हूँ बातें
पर उस बंद ख़त से कुछ न कह पाया
सबसे कहता हूँ तू सपनो में आकर मिलता हैं
पर सच अपनी किस्मत में तो सपने भी किस्मत जैसे
कभी मिलते कभी नाराज़ हो जाते
जब तकदीर में कुछ पाना होता हैं
ठीक उसी पल एक रात का आना होता हैं
रात सुबह में फ़िर बदल जाती
पर तेरी यादो को मेरे खातो में कैद होकर
मेरी बंद अलमारी से हर पल आना होता हैं
No comments:
Post a Comment