Monday, October 27, 2008

20th october opening poem

अब किसे चाहे किसे ढूंढा करे
वो भी आख़िर मिल ही गया
बताओ बताओ अब हम क्या करे
हलकी हलकी बारिश होती रही
सोचा हमने भी की अब फूलो की तरह भीगा करे
आँखें मुंड कर इस गुनगुनी सी ठण्ड में बैठे रहे
और देर तक तुझे सोचा करे
दिल मोहब्बत ये दुनिया साड़ी
दिल के हर झरोखे से बस तुझे

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