Monday, October 27, 2008

21 st october opening poem

देखने में भोला भला था वो फरिश्तो की तरह
ये कहाँ सोचा था कि मुझको ही वो चुरा ले जायेगा
मुझको खुशफहमी में रखने का उसे शौक़ हैं
मुझको क्या पता था वो कमबख्त ख़त लिखेगा नही
बस मेरा दिल रखने को मुझसे पता ले जायेगा
हम दीवानों को कहाँ कुछ चाहिए पर देखना
मुझे वो अपना दिल देगा नही
और मुझे बिन बताये वो मेरा दिल ले जायेगा
दोस्तों मुझसे न पूछो मोहब्बत का पता
(हमेशा आपसे भी दोस्त पूछते होंगे न अरे पता नही कब प्यार करने वाला कोई होगा , कब कोई मिलेगा क्या होगा )
कि दोस्तों मुझसे न पूछो मोहब्बत का पता
मेरी मंजिल तक मुझे ख़ुद रास्ता ले जायेगा
वो तो शायद जी लेगा मेरे बिना
पर मुझसे अब न अकेले जिया जायेगा

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