Monday, October 27, 2008

11th october opening poem

वो धुंधला सा चेहरा अब साफ़ होने लगा
कोहरा था कही पे पर धीरे धीरे वो कोहरा अब हटने लगा
इंतज़ार था ये कई सदियों का
सदियों के बाद अब शायद मुझे भी प्यार होने लगा
क्यों मैं पहले सब कुछ भूल सो जाता था
(बहुत नींद आती थी )
क्यों मैं पहले सब कुछ भूल सो जाता था
जाने अनजाने बस अपने ही खयालो में खो जाता था
हुआ ये अचानक किसी का ऐसा जादू
कि उस जादू ने सब बदल सा डाला
पहले ख्यालो में भी अकेला रहता था
और अब अकेलेपन में भी अपना बना डाला
कशिश उसकी मोहब्बत की लगती हैं
खुबसूरत होती हैं कई लड़किया
पर आंखों में सूरत किसी की न जचती हैं
शायद वो काला जादू जानती हैं
(उसकी आंखों से लगता हैं ऐसा )
कि शायद वो काला जादू जानती हैं
तभी काले रंग में कमाल लगती हैं
तुमको दिखे तो कहना ज़रूर उससे
(sun rahe hain na udaypur )
कि तुमको दिखे तो कहना ज़रूर उससे
कि उसके होने से ही वजह मुझे मेरे जीने की नज़र आती हैं

No comments: