आज जब रात होगी
मेरी एक रौशनी से मुलाक़ात होगी
दिए तो हम सब जलाएंगे
मगर दियो के बीच आज शायद ये बात होगी
वो कैसे हमसे ज्यादा रौशनी देती हैं
हम पुरे साल इस दिन का इंतज़ार करते हैं
और वो खुबसूरत पुरे साल न जाने किसके दिल में रहती हैं
जानते नही वो दिए बेचारे
वो खुबसूरत मेरे दिल में रहती हैं
जहा बहुत अँधेरा रहता हैं
बहुत सारे लोगो की जगह तो नही
बस इस छोटे से कमरे में
किसी फुलछड़ी का एक बल्ब जला रहता हैं
पर उसकी मोहब्बत के बाद
इस अँधेरी कोठडी में बड़ी रौशनी रहती हैं
और वो खुबसूरत हर दिए से बस इतना कहती हैं
प्यार करो इतना करो कि कभी कम न हो
रौशनी रहे न रहे सदा बस
मुझे सुनाने वाले इस उदयपुर की आँख कभी नम न हो
वो हर दिए से कहती हैं
कि क्यों चंद पैसो के लालच में हम अपना ईमान बेचते हैं
क्यों मोहब्बत के नाम पर अपनी रोटिया सकते हैं
और किसी का हाथ थामकर क्यों दूर जाना चाहते हैं
और क्यों अंधेरे का बहाना बनाकर
रौशनी के मोड़ से मुड जाते हैं
2 comments:
very nice poem...!!
hi ankit.ur poems are gr8,i have no words to say anything.but keep writing.
keep smiling,may god give u everything what u want.
pooja
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