प्यास दरिया की निगाहों से बचा रखी हैं
एक बादल से हमने बड़ी आस लगा रखी हैं
खामोशी खामोश हैं
सन्नाटे चुपचाप हैं
तेरे जाने से ये आलम सारे अपने आप हैं
यूँ तो लगती हैं हर तरफ़ नमी नमी सी
तेरे जाने के बाद कोई कमी कमी सी
फ़िर क्यों न जाने हम इतना तरसे
(कुछ सवाल होते हैं जिनके जवाब नही होते )
फ़िर क्यों न जाने हम इतना तरसे
इक बदल का टुकडा
ये इक बदल का टुकडा
(आप जानते हैं न बादल के टुकड़े जब इकठ्ठे हो जाते हैं साथ साथ हो जाते हैं तो कैसा लगता हैं )
ये इक बादल का टुकडा अब कहाँ कहाँ बरसे
ढूंढा देखा तो जाना
ये तमाम शहर हैं निगाहों से प्यासा
ये इक बादल का टुकडा अब कहाँ कहाँ बरसे
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