Thursday, October 9, 2008

6th october closing poem

दोस्त नया हो या पुराना याद तो रहता हैं
दिल के किसी कोने में अहसास बनके तो रहता हैं
कभी तू ख़ुद से पूछ क्या पाया और क्या खोया तुने
(पूछते हैं कभी ऐसा यार ऐसा क्यों हुआ मेरे साथ वो कहाँ चला गया मेरे पास friends नही हैं मैं बहुत अकेला हूँ )
कभी तू ख़ुद से पूछ क्या पाया और क्या खोया तुने
या तुझे भी अब मेरे मिलने के बाद कुछ याद नही रहता हैं
जिंदगी के मोड़ पर कुछ नाज़ुक रिश्ते हैं बनते
कुछ सड़क के मोड़ पर हैं बिछडते
कुछ जाने अनजाने साथ हैं चलते
जो जान bujh कर बिछड़ जाते वो रिश्ते बड़े कमज़ोर हैं कहलाते
जान बुझ के जब कोई चला गया आपसे दूर तो
वो रिश्ते बड़े कमज़ोर कहलाते
जो मुश्किल परिस्थितियों में आपके साथ चलते
वही मुझे अपनों से ज्यादा प्यारे नज़र हैं आते
तू न मिल मुझसे मुझे कोई गम नही
बस उदास न रहा कर
न उदास रह कर मुझे उदास किया कर
तेरी हँसी से ही तो मेरी साँसे चलती हैं
तू उदास रह कर क्यों दिल का ये हाल करती हैं

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